जर्मन मूल की ग्लोबल ई-पेमेंट कंपनी वायरकार्ड ने बैंकिंग और इसके नजदीकी धंधों में अपने हाथ-पैर पूरी दुनिया में फैला रखे थे। फिर भी उसका कद ऐसा नहीं है कि इसी 25 जून को उसके दिवाला बोल देने से दुनिया के वित्तीय ढांचे पर 2008 जैसा खतरा मंडराने लगे। अलबत्ता, जिस तरह इस मामले में एक बड़ी ग्लोबल एकाउंटेंसी फर्म अर्न्स्ट एंड यंग की सांठ-गांठ सामने आई है, उसे देखते हुए तमाम छोटे-बड़े निवेशकों में डर समाऔरऔर भी

ब्रिटेन का बिजनेस दैनिक फाइनेंशियल टाइम्स भारतीय बाजार में उतरना चाहता है, पर इसके लिए उसे अनुमति नहीं मिल पाई है। अखबार के संपादक ने कहा है कि भारत आने की अनुमति नहीं मिलने से उन्हें काफी निराशा है। इस आर्थिक अखबार के संपादक लायनल बार्बर ने कहा, ‘‘हम भारत में सीधे प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं। हम पिछले 20 साल से यहां आने का प्रयास कर रहे हैं। यह निराशाजनक है।’’ बार्बर ने भारत के प्रिंट मीडियाऔरऔर भी

भले ही देश के सबसे पुराने उद्योग समूह टाटा में रतन टाटा के उत्तराधिकारी की तलाश जोरशोर से शुरू हो चुकी हो और देश की प्रमुख आईटी कंपनी इनफोसिस तक में नारायण मूर्ति की जगह भरने की कोशिशें तेज हो गई हों, लेकिन तीन चौथाई से ज्यादा भारतीय कंपनियों में अगला सीईओ कौन होगा, इस पर चर्चा तक नहीं होती। यह निष्कर्ष है अमेरिकी सलाहकार फर्म बेन एंड कंपनी के एक ताजा सर्वेक्षण का। लंदन से प्रकाशितऔरऔर भी