देश में चुनावों के माहौल में घोटालों की बहार है। जिन चुनावी बॉन्डों का पूरा ब्योरा देने के लिए देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई तीन महीने का वक्त मांग रहा था, वह सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगते ही तीन दिन में सारा डेटा लेकर सामने आ गया। अब चुनावी बॉन्डों के जरिए कॉरपोरेट क्षेत्र से की गई रिश्वतखोरी व वसूली और मनी-लॉन्ड्रिंग को छिपाने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन आर्थिक व वित्तीय क्षेत्रऔरऔर भी

माना जा रहा था कि भारत से लाइसेंस-परमिट राज 33 साल पहले 1991 में नई आर्थिक उदार नीतियां लागू होने के बाद खत्म हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनावी बांडों के खुलासे से साफ हो गया कि देश में अब भी कंपनियों के लिए सरकार की कृपा बहुत मायने रखती है। जिस तरह अपोलो टायर्स, बजाज ऑटो, बजाज फाइनेंस, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा ग्रुप, पिरामल एंटरप्राइसेज़, गुजरात फ्लूरोकेमिकल्स, टीवीएस, सनफार्मा, वर्द्धमान टेक्सटाइल्स, मुथूत, सुप्रीम इंडस्ट्रीज़,औरऔर भी

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन हमारा शेयर बाज़ार महीना भर पहले हांगकांग को पीछे छोड़कर दुनिया का चौथा बड़ा शेयर बाजार बन गया। अब अमेरिका, चीन व जापान के शेयर बाज़ार ही हम से ऊपर हैं। तीन दिन पहले 7 मार्च को तो निफ्टी-50 और बीएसई सेंसेक्स नए ऐतिहासिक शिखर पर पहुंच गए। अब सभी को डर सताने लगा है कि यहां से बाज़ार कहीं खटाक से गिर गया तो? आखिर चीन काऔरऔर भी

देश के 90% से ज्यादा लोगों की महीने की आमदनी ₹25,000 से कम है। समझना मुश्किल नहीं कि इसमें से कितने में वे घर-परिवार चलाते होंगे, कितना हारी-बीमारी जैसे आकस्मिक खर्च पर जाता होगा और इसके बाद वे कितना बचा पाते होंगे। डेटा बताता है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2023 तक भारतीय घरों की कुल वित्तीय बचत ₹86.2 लाख करोड़ रही है। इसमें से ₹31.6 लाख करोड़ बैंक व अन्य संस्थाओ के एफडी, ₹49.5 लाख करोड़औरऔर भी

शेयर बाज़ार से कमाने के लिए अगर हम निवेश और ट्रेडिंग के अंतर को सही-सही समझ लें तो हमारी सफलता की प्रायिकता बढ़ जाती है। याद रखें कि शेयर बाज़ार में पक्का कुछ नहीं। यहां सब कुछ रैंडम या यदृच्छया चलता है। इसलिए यहां सफलता की प्रायिकता या प्रोबैबिलिटी ही चलती है। लेकिन यह बात मन में पक्के तौर पर बैठाना लेनी चाहिए कि निवेश लम्बे समय की ट्रेडिंग है और ट्रेडिंग छोटे समय का निवेश। इसऔरऔर भी

खास लोगों की बात अलग है। सांसद-विधायक एक बार में इतना कमा लेते हैं कि सात पुश्तों का इंतज़ाम। ऊपर से ताजिंदगी भरपूर पेंशन। सरकारी कर्मचारियों को बराबर महंगाई भत्ता। लेकिन हमारे-आप जैसे आम आदमी की कमाई कभी महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ती। बीस साल में देशी घी ₹150 से ₹600 किलो और 10 ग्राम सोना ₹6000 से ₹60,000 का हो गया। लेकिन हमारी कमाई भी क्या इसी रफ्तार से बढ़ी? जो खा-पी लिया, पहन-ओढ़ लिया,औरऔर भी

इस समय अपनी अर्थव्यवस्था ही नहीं, शेयर बाज़ार तक का हाल विचित्र है। अर्थव्यवस्था में 17% का योगदान करनेवाली केंद्र व राज्य सरकारों का हाल दुरुस्त है। मगर, बाकी 83% योगदान करनेवाले छोटे-बड़े उद्योगों व आम घरों का हाल पस्त है। शेयर बाज़ार में उन कंपनियों के शेयर चमकते ही जा रहे हैं, जिनका धंधा सरकारी खपत पर टिका है। आईआरबी इंफ्रा जैसी कंपनी का शेयर साल भऱ तीन गुना हो चुका है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकरऔरऔर भी

वॉरॆन बफेट दुनिया के सफलतम निवेशक हैं। लेकिन वे सबसे अमीर व्यक्ति नहीं हैं। इलोन मस्क 226.6 अरब डॉलर की निजी दौलत के साथ दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं। लेकिन वे निवेशक कम और उद्यमी ज्यादा हैं। विद्युत कार निर्माता टेस्ला, रॉकेट निर्माता कंपनी स्पेस-एक्स और अब एक्स बन चुकी ट्विटर जैसी कई कंपनियों के मालिक हैं। दूसरे नंबर पर 175.1 अरब डॉलर की दौलत के साथ फ्रांस के बर्नार्ड आरनाल्ट हैं। वे भी एक उद्यमीऔरऔर भी

अपने शेयर बाज़ार में अच्छी कंपनियों की कमी नहीं। एक ढूंढो, हज़ार मिल जाती हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि लगभग सारी की सारी अच्छी कंपनियां हाथ से निकल चुकी हैं। उनके शेयर इस वक्त आसमान से बातें कर रहे हैं। इनमें से पांच-दस दिन की ट्रेडिंग तो की जा सकती है। लेकिन लम्बे समय के लिए इन्हें खरीदना फालतू का जोखिम उठाना है। जोखिम भी उठाओ और कायदे का रिटर्न भी न मिले तो क्या फायदा!औरऔर भी

शेयर बाज़ार के निवेशकों का साबका बार-बार ‘वैल्यू’ से पड़ता है। वॉरेन बफेट का मशहूर वाक्य है कि ‘प्राइस’ वो है जो आप देते हो और ‘वैल्यू’ वो है जो आप पाते हो। अंग्रेज़ी में पारंगत लोग भले ही इसका अर्थ और मर्म समझ लें। लेकिन हिंदी या अन्य भारतीय भाषाएं बोलने-समझने वाले लोगों को इसमें काफी दिक्कत होती है। प्राइस का अनुवाद कीमत, दाम या भाव हो सकता है और वैल्यू को हम मूल्य कह सकतेऔरऔर भी