ज्यादातर रिटेल ट्रेडर इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते हैं। इसमें सफलता के लिए ज़रूरी शर्त है कि आपके पास भरपूर पैसा, भरपूर समय और भरपूर अनुभव होना चाहिए। इनमें से रिटेल ट्रेडरों के पास एक ही चीज़ पर्याप्त होती है, वो है भरपूर समय। बाकी दो चीजों के अभाव में वो बराबर घाटा खाते रहते हैं। बहुत हुआ तो ठेले-खोंमचेवाले जैसी जिंदगी जीने लायक कमा लेते हैं। बड़ी अजीब त्रासदी है यह। चलिए, देखते हैं अब मंगलवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

ऐसा नहीं कि हर करोड़पति ट्रेडर एकदम बुद्ध बन गया होता है और रिटेल ट्रेडरों की तरह भावनाओं में बहकर नुकसान नहीं उठाता। लेकिन 100 करोड़ रुपए की कंपनी में 20 करोड़ की खरीद या बिक्री भावों की उलटपुलट के लिए अपने आप में काफी होती है। बाज़ार के हालात, उसका स्वरूप बराबर बदलता है। इसलिए कुशल ट्रेडर को अपनी रणनीति को बराबर मांजते रहना पड़ता है। एक रणनीति हमेशा काम नहीं आती। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

भिंडी बाज़ार तक में दाम बढ़ने-घटने की वजह होती है। यह तो शेयर बाज़ार है। यहां शेयर के भाव यूं ही नहीं घटते-बढ़ते। उनमें कंपनी का कामकाज़ झलकता है। जैसे, स्टर्लिंग बायोटेक साल 2008 तक अच्छा कमा रही थी तो शेयर 262.45 रुपए के शिखर पर था। ऋण के बोझ तले घाटे के दलदल में धंसती गई तो शेयर 3.43 की तलहटी छूने के बाद फिलहाल 7.80 रुपए पर है। सोचिए-समझिए। आज तथास्तु में एक लार्जकैप कंपनी…औरऔर भी

शेयरों की ट्रेडिंग में या तो आप जीतते हैं या हारते हैं। यहां जीत-हार के बीच की कोई चीज़ नहीं होती। बाज़ार में बहुत-से सौदे न्यौता देकर बुलाते हैं कि आओ! हमें झपटकर ले जाओ। लेकिन ज्यादातर इनके पीछे उस्तादों का फैलाया जाल/ट्रैप होता है जिसमें फंसकर आप अपनी पूंजी गंवा बैठते हैं। दूसरी तरफ कम रिस्क और ज्यादा लाभ के सौदे होते हैं जिन्हें हमें तलाशकर निकालना होता है। काम बड़ा दुश्कर है। बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

इसे लिक्विडिटी कहें या सस्ते विदेशी धन का प्रवाह। इसी ने अमेरिका व जापान समेत दुनिया भर के शेयर बाज़ारों को चढ़ा रखा है। इसका अर्थव्यवस्था की मूल ताकत से खास लेनादेना नहीं। कुल विश्लेषक इसे अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व द्वारा किया गया मैनिप्युलेशन बता रहे हैं। लेकिन शेयर बाज़ार में धनबल के दम पर ऐसी धांधली चलती रहती है। जब सरकारें तक इसमें लगी हों तो इसे कौन रोक सकता है! अब शुक्र की दिशा…औरऔर भी

विदेशी निवेशक (एफआईआई) हमारे बाज़ार के गुब्बारे में हवा भर चुके हैं। करीब महीने पर पहले इकनॉमिक टाइम्स ने एक अध्ययन किया था। सेंसेक्स से ज्यादा एफआईआई हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 16000 पर आ गया और कम हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 41000 पर चला गया। घरेलू संस्थाओं से लेकर कंपनियों के प्रवर्तक तक बेच रहे हैं, विदेशी खरीदे जा रहे हैं। आखिर क्यों? जवाब जटिल है। अब इस हफ्ते की चाल…औरऔर भी

ज़िंदगी में बहुत सारी घटनाएं बिना बुलाए चली आती है, जबकि कुछ का पता पहले से रहता है। इन घटनाओं के वक्त हम क्या करते हैं, इसी से हमारे लिए उसका फल तय होता है। लेकिन कभी-कभी कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिन पर कुछ न करना ही सबसे अच्छी रणनीति है। आज मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा के रूप से ऐसी ही घटना होने जा रही है। इसे देखिए, समझिए। लेकिन ट्रेडिंग बहुत सावधानी से…औरऔर भी

बाज़ार में जब भी संस्थागत निवेशकों या एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) का बड़ा धन लगता है तो शेयर फौरन उछल जाते हैं। वहीं उनके बेचने पर शेयर खटाक से गिर जाते हैं। लेकिन रिटेल निवेशकों की खरीद/बिक्री का खास असर शेयरों पर नहीं पड़ता। जिस तरह हाथी के चलने से मिट्टी रौंदी जाती है, उसी तरह बड़ों की मार में छोटे निवेशक पिसते हैं। इसलिए कमाई बड़ों की राह पकड़ने से होती है। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी

हमें डिस्काउंट की आदत है। लेकिन शेयर बाज़ार में यह सोच कभी-कभी भारी पड़ सकती है क्योंकि यहां कोई स्टॉक सस्ता क्यों है और महंगा क्यों, इसकी बड़ी स्पष्ट वजहें होती हैं। अच्छा स्टॉक कभी किसी निगाह से छूटता नहीं। लोग उसे लपकने लगते हैं और फ्लोटिंग स्टॉक सीमित होने के कारण खट से शेयर चढ़ जाता है। याद रखें, सस्ती चीजें हमेशा अच्छी नहीं होतीं और अच्छी चीजें कभी सस्ती नहीं होतीं। अब बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

अनाड़ी ट्रेडर जहां-तहां मुंह मारते हैं। वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर एक ही बाज़ार में महीनों डटे रहते हैं। प्रोफेशनल एक खास तरीके पर महारत हासिल करते हैं। बहुत-से लोग उनकी ट्रेडिंग का पैटर्न देखकर भी सीखते हैं। लेकिन हर हाल में आपको अपना सौदा तथ्यों और संभावनाओं पर टिकाना होता है, न कि ‘गट-फीलिंग’ या उम्मीद पर। सही उत्तर अपनी रिसर्च से तलाशे जाते हैं। तभी आप में ट्रेडिंग का आत्मविश्वास बनेगा। इसी कड़ी में बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी