तेज़ी पर सवार अपने शेयर बाज़ार के लिए पिछले सात दिन किसी झटके से कम नहीं। सब ठीकठाक, कहीं कोई अनहोनी नहीं। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने 19-20 सितंबर को हुई अपनी बैठक में ब्याज दरों को 5.25% से 5.50% की रेंज पर जस का तस रखने का फैसला किया। यह अच्छी खबर थी। फिर भी अपना बाजार गिरता गया। उस शुक्रवार को निफ्टी-50 अब तक के ऐतिहासिक शिखर 20,192.35 पर था, जबकि इस शुक्रवारऔरऔर भी

देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति बराबर सुधर रही है। फिर भी वो अभी पूरी क्षमता पर उत्पादन नहीं कर पा रहा। रिजर्व बैंक के अद्यतन सर्वे के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी-मार्च की चौथी तिमाही में क्षमता इस्तेमाल का स्तर 76.3% रहा है, जबकि इससे पहले की तीन तिमाहियों में यह क्रमशः 74.3%, 74% और 72.4% रहा था। महीने भर पहले छपे रिजर्व बैंक के इस सर्वे में 752 मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों ने भाग लिया।औरऔर भी

इस साल मार्च से ही शेयर बाज़ार पर तेज़ी का सुरूर छाया हुआ है। छोटी-बड़ी सभी कंपनियों के शेयर चढ़े चले जा रहे हैं। सेंसेक्स 67,600 और निफ्टी 20,000 के करीब पहुंच कर नीचे उतरा है। अब भी तमाम सूचकांकों में शामिल 80-90% स्टॉक्स 52 हफ्ते के शिखर के आसपास डोल रहे हैं। ऐसे में निवेशकों को मौका चूक जाने का डर सताने लगा है, जिसे अंग्रेज़ी में Fear of Missing out या फोमो कहते हैं। इसऔरऔर भी

बड़े-बड़े विद्वान भले कहते हों कि शेयरों में निवेश हमेशा के लिए होता है, लेकिन इस बाज़ार से वही कमाता है तो बराबर मुनाफा निकालता रहता है। ऐसे में सबसे अहम सवाल है कि किसी शेयर से कब मुनाफा निकाला जाए? सीधा-सा जवाब है जब भी ज़रूरत पड़े। पहली बात तो यह है कि शेयर बाज़ार में वही धन लगाना चाहिए जो हमारी वर्तमान व आकस्मिक ज़रूरतों का इंतज़ाम करने के बाद इफरात बचता हो। दूसरी बात,औरऔर भी

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारत पहुंचा है तो किसी हवन, भजन-कीर्तन या नमाज नहीं, बल्कि विज्ञान के बल पर। हमें जीवन ही नहीं, निवेश तक के सवालों को सुलझाने में विज्ञान की इस ताकत को समझना होगा। विज्ञान के साथ चलने में फायदा ही फायदा, छलांग ही छलांग। न कोई धोखा, न कोई घाटा। इस समय कई कंपनियां अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय हैं। मसलन, अवांटेल जैसी छोटी कंपनी ने 1990 ने काम शुरू कियाऔरऔर भी

क्या ऐसा हो सकता है कि बराबर कंपनियां छांटकर निवेश करने के बजाय हम एक बार ही 20-30 कंपनियों में निवेश कर दें और भूल जाएं। दस-बीस साल तक बराबर लाभांश पाते रहें और जब ज़रूरत पड़े तो 15-16% की सालाना चक्रवृद्धि दर के रिटर्न के साथ अपना धन निकालकर इस्तेमाल कर लें। लाभांश का चक्कर छोड़ दें तो हम निफ्टी-50 के ईटीएफ में एसआईपी से यह काम कर सकते हैं। साथ ही कुछ कंपनियों का दमखमऔरऔर भी

जो बड़ा है, वो अच्छा हो, यह कतई ज़रूरी नहीं। यह जीवन से लेकर बिजनेस तक के लिए सच है। लेकिन बिजनेस का सच यह भी है कि जो अच्छी व शानदार कंपनियां हैं, वे ज़रूरी नहीं कि बड़ी कंपनियां हों। खासकर, भारत जैसे देश की हकीकत यह है कि यहां रोज़गार से लेकर निर्यात तक में सबसे बड़ा योगदान छोटी व औसत या मध्यम आकार की कंपनियों का है। निवेश के लिहाज़ से भी छोटी कंपनियांऔरऔर भी

भारत दो साल पहले ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आईएमएफ का कहना है कि चार साल बाद 2027 में वह जापान व जर्मनी को पीछे छोड़ अमेरिका व चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आगे की यात्रा यकीनन कठिन होगी। कारण, जापान व जर्मनी की अर्थव्यवस्था हमसे ज्यादा बड़ी नहीं है। लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था हमसे पांच गुनी बड़ी है। हमारा जीडीपी अभी 3.2 लाख करोड़ याऔरऔर भी

माल उतना ही और वहीं व उसी को बेचो, जहां से पेमेंट जल्दी से जल्दी मिल जाए। पेमेंट में देरी हो गई तो धंधा चौपट हो सकता है। यह सब्जी व किराना स्टोर से लेकर छोटे व बड़े बिजनेस तक का मंत्र है। हम अक्सर कंपनी की लाभप्रदता परखने के लिए इतना भर देखते हैं कि कहीं वह कर्ज के बोझ तले दबी तो नहीं और उसका ऋण-इक्विटी अनुपात हर हाल में एक से कम हो। लेकिनऔरऔर भी

आप शेयर बाज़ार में निवेश करने जाएं तो साफ गिन लें कि कितना धन डुबाने का जोखिम ले रहे हैं। मुमकिन है कि किसी कंपनी में आपने जितना धन लगाया, वह सारा का सारा डूब जाए। जब जेब और मन इसके लिए तैयार हो, तभी निवेश करें। नहीं तो बेहतर होगा कि सरकार के बॉन्ड, बैंकों की एफडी या पीपीएफ वगैरह में अपना धन पार्क कर दें, जहां कम से कम मूलधन तो सुरक्षित बना हुआ दिखेगा।औरऔर भी