जैसे ही कोई द्वंद्व सुलझता है, खुशी के नए सोते खुल जाते हैं। प्रकृति का यही नियम है। टकराव को, गुत्थी को नहीं सुलझा पाना ही हार जाना है। और, हारा हुआ शख्स कभी खुश नहीं रहता। खुशी तो जीतने से ही मिलती है।और भीऔर भी

चलते-चलते राह में तिराहे-चौराहे आते हैं। सोचते-सोचते मन में दुविधाएं आती हैं। सुलझते-सुलझते नई समस्याएं आ जाती हैं। यही तो जीवन का आनंद है दोस्त। वरना, सब एकसार रहता तो बोर नहीं हो जाते।और भीऔर भी

हम भिन्न हैं तभी तो हम हैं। नहीं तो सांचे से निकली ईंट और हम में फर्क ही क्या रहता। जो इस भिन्नता को समझता है और इससे होनेवाली तकरार को प्रोत्साहित करता है, वही अच्छी व कारगर टीम बना सकता है।और भीऔर भी