अनजाने में चूक हो जाए तो समझ में आता है। लेकिन सब कुछ जानते-बूझते हुए भी गलती हो जाए तो वह अनायास नहीं होती, उसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता है। जानते हैं कि हमारे शेयर बाजार में कंपनियों की मजबूती जानने के बाद भी उनके शेयर क्यों पिटते रहते हैं? इसलिए यहां निवेशक नहीं, ट्रेडरों की बहुतायत है। हर्षद मेहता के समय 1991-92 में रिटेल निवेशकों की संख्या दो करोड़ से ज्यादा थी। आज इधर-उधरऔरऔर भी