साल 2012 में बाजार का पहला दिन। हर ब्रोकरेज हाउस व बिजनेस अखबार नए साल के टॉप पिक्स लेकर फिर हाजिर हैं। चुनने के लिए बहुत सारे विकल्प सामने हैं। ऐसे में आपको और क्यों उलझाया जाए! हालांकि अगर साल 2011 के टॉप पिक्स का हश्र आपके सामने होगा तो शायद आपने इस हो-हल्ले को कोई कान ही नहीं दिया होगा। इन पर ध्यान देना भी नहीं चाहिए क्योंकि ढोल, झांझ, मजीरा व करताल लेकर यह मंडलीऔरऔर भी

इनफोसिस, एचडीएफसी बैंक, एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस और इंडिया इनफोलाइन जैसी 45 से ज्यादा कंपनियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की शेयरधारिता प्रवर्तकों से ज्यादा हो गई है। स्टॉक एक्सचेंजों के पास उपलब्ध सितंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक इनफोसिस की इक्विटी में एफआईआई की हिस्सेदारी 36.66 फीसदी है, जबकि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी उनसे 20.62 फीसदी कम 16.04 फीसदी ही है। इसी तरह एचडीएफसी बैंक में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 23.23 फीसदी है, जबकि एफआईआई का निवेश 29.30 फीसदीऔरऔर भी

कुछ लोग इसे धर्मांध मुसलमानों का तुष्टीकरण बता सकते हैं, लेकिन बिजनेसवालों के लिए यह ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने दायरे में लाकर धंधा बढ़ाने या वित्तीय समावेश का तरीका है। जी हां, सोमवार 27 दिसंबर से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) इस्लाम धर्म की मान्यताओं पर खरा उतरनेवाला एक सूचकांक शुरू कर रहा है। उसने इसे तक़वा एडवाइजरी एंड शरीया इनवेस्ट सोल्यूशंस (तासिस) के सहयोग से बनाया है। इनका नाम है बीएसई तासिल शरीया 50 इनडेक्स।औरऔर भी

हमारे शेयर बाजार में पब्लिक या आम निवेशकों की भागीदारी लगातार घटती जा रही है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशक लगातार इस स्थिति में बने हुए हैं कि उनके अकेले की ताकत पब्लिक समेत तमाम भारतीय निवेशकों के लगभग बराबर बैठती है। रेलिगेयर कैपिटल मार्केट्स की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कंपनियों की शेयरधारिता में आम निवेशकों का हिस्सा जून 2008 में 9.24 फीसदी था, लेकिन जून 2010 तक यह घटकर 8.16 फीसदी रह गया। इस दौरानऔरऔर भी