यूं तो इधर सभी ब्रिक देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन) की आर्थिक दशा खराब चल रही है। लेकिन इनमें सबसे खराब हालत भारत की है। इसका पता दयनीयता या मिज़री सूचकांक से चलता है। यह सूचकांक किसी देश में मुद्रास्फीति और बेरोजगारी की दर को जोड़कर निकाला जाता है। भारत का दयनीयता सूचकांक अभी 17.8% (बेरोजगारी दर 8.5% + मुद्रास्फीति 9.3%) है, जबकि ब्राज़ील में यह सूचकांक 10.9% (5.5% + 5.4%), रूस में 10.8% (5.7% + 5.1%)औरऔर भी

विश्व बैंक के मुताबिक बिजनेस करने की सहूलियत के बारे में दुनिया के 183 देशों में भारत का 132वां नंबर है। एक साल पहले 2011 में यह रैंकिंग इससे भी सात पायदान नीचे 139 पर थी। कमाल है, भ्रष्टाचार के मामलों के खुलने के बाद देश की रैंकिंग चढ़ गई! खैर, दुनिया में फिलहाल बिजनेस करने की सहूलियत को लेकर सिंगापुर पहले नंबर पर है। चीन, ब्राजील या रूस को तो छोड़िए, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका व नेपालऔरऔर भी

दुनिया की पांच सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाले देशों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) ने खुलकर आरोप लगाया है कि अमीर देशों ने पिछले पांच सालों से दुनिया को वित्तीय संकट में झोंक रखा है। उनकी मौद्रिक नीतियों ने विश्व अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दिया है। दिल्ली में ब्रिक्स के चौथे शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त घोषणापत्र में यह धारणाएं व्यक्त की गई हैं। घोषणापत्र में कहा गया है किऔरऔर भी

चीनी देश का इकलौता उद्योग है जहां बीस साल पहले उठी उदारीकरण की बयार अभी तक नहीं पहुंची है। कच्चे माल, गन्ने की कीमत सरकार तय करती है। केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों तक का इसमें दखल रहता है। फिर अंतिम उत्पाद, चीनी का एक हिस्सा लेवी के बतौर सरकार खुद तय की गई कीमत पर ले लेती है। सरकार के इतने अंकुश के बावजूद हालात दुरुस्त नहीं हैं और किसानों व चीनी मिलों में ठनी रहतीऔरऔर भी

बर्फ से ढंके यूरोपीय देश स्विटजरलैंड के दावोस शहर में दुनिया भर के प्रभुता-संपन्न और एक फीसदी अमीरतम लोगों के नुमाइंदे अपनी सालाना बहस के लिए जुट चुके हैं। आल्प्स की खूबसूरत पहाड़ियों और बर्फीली वादियों के बीच वे आज, 25 जनवरी बुधवार से 29 जनवरी रविवार तक विश्व अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा पर विचार करेंगे। लेकिन उनके साथ जिरह करने के लिए दुनिया के 99 फीसदी वंचितों के प्रतिनिधियों ने भी इग्लू के कैंपों में डेरा डालऔरऔर भी

साल 2008 और 2009 में बाजार लेहमान संकट की भेंट चढ़ गया। अब 2011 पर यूरोप व अमेरिका का ऋण संकट मंडरा रहा है। अमेरिका की आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटाकर 1 फीसदी कर दिया गया है। अमेरिका के इतिहास में यह भी पहली बार हुआ कि स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने शनिवार को उसकी रेटिंग एएए के सर्वोच्च स्तर से घटाकर एए+ कर दी और आगे एए भी कर सकती है। हालांकि अमेरिकी वित्त मंत्रालयऔरऔर भी

श्री रेणुका शुगर्स में निवेश करने की सलाह सात-आठ महीने पहले शुरू हो गई थी। अक्टूबर से दिसंबर 2010 के बीच सभी ललकार कर कहते हैं कि इसे खरीद लो, इसमें अच्छा रिटर्न मिलेगा। लेकिन तब यह शेयर बहुत बेहतर स्थिति में था। नवंबर में 108.15 रुपए तक चला गया जो 52 हफ्ते का उसका उच्चतम स्तर है। जनवरी में उसका सर्वोच्च स्तर 101.50 रुपए रहा। लेकिन अजीब बात है कि जो शेयर अक्टूबर से दिसंबर-जनवरी तकऔरऔर भी

एक तरफ यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सभी को आवश्यक अनाज देने का हल्ला मचाए हुए है, वहीं कुछ अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) भी इसी तरह की मुहिम से अपना आधार व स्वीकृति बनाने में जुट गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नामी एनजीओ ‘ऑक्सफैम’ ने भूख-मुक्त भारत के लिए पटना सहित देश के अन्य पांच शहरों से मंगलवार को एक व्यापक अभियान शुरू किया। ऑक्सफैम के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवींद कुमार प्रवीण ने पटना मेंऔरऔर भी

आर्थिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) एक दूसरे को अपनी स्थानीय मुद्रा में कर्ज और अनुदान के लेनदेन पर सहमत हो गए हैं। ब्रिक्स देशों के बीच इस आशय के एक समझौते में चीन के शहर सान्या में हस्ताक्षर किए गए। इस पहल को अमेरिकी मुद्रा डॉलर पर निर्भरता और उसके वर्चस्व को घटाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। समझौतेऔरऔर भी

ब्रिक देश (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) अब उभरते बाजार नहीं रह गए हैं बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था के लिये ‘वृद्धि बाजार’ बन गए हैं। अमेरिकी निवेश बैंक गोल्डमैन शैक्स के चेयरमैन (संपत्ति प्रबंधन) जिम ओ नील ने बीजिंग में यह बात कही है। दस साल पहले जिम ओ नील ने ही इन देशों के लिए उभरता बाजार शब्द का उपयोग किया था। ब्रिक्स शिखर बैठक से पूर्व ओ नील ने चाइना डेली को दिए गए साक्षात्कार में कहा,औरऔर भी