जिंदगी की चाक पर शरीर को जिस तरह नचा दो, वो उसी तरह नाचने लगता है। वैसा ही स्वरूप, वैसा ही नियम-धरम अपना लेता है। कमाल तो यह है कि यहां कुम्हार भी हम हैं और नाचते भी हम ही हैं।और भीऔर भी