नोट छापना आसान है, कमाना नहीं। वरना हर कोई शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से जमकर कमा रहा होता। आम सोचवालों के लिए ट्रेडिंग से कमाई शेर के जबड़े से शिकार निकालने जैसा काम है। सामने बैठे हैं उस्तादों के उस्ताद, जो भीड़ की हर मानसिकता का इस्तेमाल बखूबी करते हैं। अक्सर कम सतर्क लोगों को छकाने के लिए झांसा/ट्रैप बिछाते हैं जो दिखता है शानदार मौका, लेकिन फंसाते ही निगल जाता है। अभी क्या है इनका ट्रैप…औरऔर भी

ट्रेड में घुसते ही स्टॉप-लॉस लगाना जरूरी है। शेयर अनुमानित दिशा में उठने लगे तो स्टॉप-लॉस को उठाते जाएं। अगर शॉर्ट-सेल किया है और शेयर लक्ष्य की दिशा में गिरने लगे तो स्टॉप-लॉस को नीचे ला सकते हैं, लेकिन कभी भी ऊपर न करें। इसी तरह लांग सौदों में स्टॉप-लॉस को उठा तो सकते हैं, लेकिन कभी भी नीचे न लाएं। सौदे को और मोहलत देने की सोच सिर्फ-और-सिर्फ हराती है। अब रुख आज के बाज़ार का…औरऔर भी

शेयर बाज़ार के पुराने लोग राधा कृष्ण दामाणी को अच्छी तरह जानते होंगे। उन्हें ओल्ड फॉक्स, आरके, मिस्टर ह्वाइट जैसे कई नामों से जाना जाता है। उन्हें अपना गुरु मानते हैं राकेश झुनझुनवाला। सालों पहले किसी ने उनसे पूछा कि बाज़ार कैसा लग रहा है। उन्होंने कहा: अच्छा लग रहा है। सामनेवाले ने पूछा: क्या लूं। उन्होंने कहा: जो अच्छा लगे, ले लो। सार यह कि कमाने के लिए हमें अपना सिस्टम बनाना होगा। अब हमारा इनपुट…औरऔर भी

ट्रेडर तो हर कोई बन सकता है क्योंकि जिसके पास भी पूंजी है वो शेयर बाज़ार में खरीदना-बेचना शुरू कर सकता है। लेकिन कामयाब ट्रेडर बनना बेहद कठिन है। संन्यासी जैसा निर्मोही और योद्धा जैसा निपुण। पुरानी सोच को घिस-घिसकर निकालना पड़ता है, अपने हथियार पर सान चढ़ानी पड़ती है। दरअसल, शेयर बाज़ार बना ही ऐसा है जहां मुठ्ठी भर जीतते हैं और खांची भर हारते हैं। जो दृष्टा है, वही जीतता है। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी

मन को न संभाले तो हर ट्रेडर जुए की मानसिकता का शिकार होता है। मान लीजिए, नौ बार सिक्का उछालने पर टेल आए तो हममें से ज्यादातर लोग मानेंगे कि अगले टॉस में हेड आना पक्का है। जबकि वास्तविकता यह है कि पिछले नौ की तरह दसवें टॉस में भी हेड या टेल की संभावना 50-50% है। इसी मानसिकता में बार-बार नुकसान खाकर हम लंबा दांव खेल सब गंवा बैठते हैं। अब करें सही दांव की शिनाख्त…औरऔर भी

सौ कमाया। सौ गंवाया। रकम बराबर तो कमाने की खुशी और गंवाने का दुख बराबर होना चाहिए। लेकिन हम-आप जानते हैं कि सौ रुपए गंवाने की तकलीफ सौ रुपए कमाने की खुशी पर भारी पड़ती है। इसे निवेश की दुनिया में घाटे से बचने की मानसिकता कहते है। 100 गंवाने का दुख 200 कमाने के सुख से बराबर होता है। इसलिए स्टॉप-लॉस और लक्षित फायदे की लाइन छोटी-बड़ी होती है। मनोविज्ञान का खेल है ट्रेडिंग। अब आगे…औरऔर भी

ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए हमें निवेशकों का मनोविज्ञान समझना होगा। इससे एक तो हम खुद गलतियों से बच सकते हैं। गलतियां फिर भी होंगी क्योंकि यह जीने और सीखने का हिस्सा है। दूसरे, इससे हमें पता रहेगा कि खास परिस्थिति में लोगबाग कैसा सोचते हैं। इससे हम ट्रेडिंग के अच्छे मौके पकड़ सकते हैं, दूसरों की गलतियों से कमा सकते हैं क्योंकि यहां एक का नुकसान बनता है दूसरे का फायदा। देखें अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

एफआईआई के जरिए आ रहे ज्यादातर विदेशी धन का स्रोत पेंशन फंड, यूनिवर्सिटी इनडावमेंट और सोवरेन फंड हैं। इनके पास 20 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा जमाधन हैं। ज्यादा रिटर्न पाने के लिए वे भारत जैसे देशों में निवेश करते रहे हैं। अब अमेरिका में ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद है तो ये अपना धन वहां के बैंकों में लगाएंगे। रिस्क/रिटर्न के इस संतुलन व मानसिकता को समझने की जरूरत है, न कि गरियाने की। अब आगे…औरऔर भी

कोई ब्रेक-आउट की उम्मीद लगाए बैठा हो और अचानक ब्रेक-डाउन हो जाए तो ऐसा तनाव बनता है कि बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाएं। दिमाग के न्यूरो-ट्रांसमीटर एक-एक कोशिका तक संदेश भेजने लगते हैं। डोपामाइन, सेरोटोनिन व मेलाटोनिन जैसे रसायनों के स्राव शरीर व मन को शिथिल करने लग जाते हैं। ऐसे में धैर्य और यह भरोसा ही सबसे बड़ा सहारा होता है कि जो हो रहा है, वह स्थाई नहीं। इस वक्त बाज़ार की यही मांग है…औरऔर भी