विचारों के बुलबुलों या गुब्बारों से कुछ नहीं होनेवाला। वे तो बनते, फूलते और फूट जाते हैं। हमें तो ऐसे स्थाई व पुख्ता विचारों की जरूरत है जो वायुयान की तरह टेक-ऑफ कर हमें नई ऊंचाई पर ले जा सकें।और भीऔर भी