सी-सॉ का खेल। तराजू के एक पलड़े पर डॉलर तो दूसरे पर रुपया। दो साल पहले जुलाई 2011 में डॉलर को बराबर करने के लिए पलड़े पर 44.32 रुपए रखने पड़ते थे। अब 61.22 रुपए रखने पड़ रहे हैं। इस तरह रुपया डॉलर के मुकाबले दो साल में 38.13 फीसदी हल्का हो चुका है। इस दौरान डॉलर खुद अपने देश में मुद्रास्फीति (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित) के कारण जुलाई 2012 तक 1.7 फीसदी और उसके बादऔरऔर भी

इस बार की बारिस में शेयर बाज़ार जिस ढलान पर फिसल रहा है, वो कहां जाकर थमेगी, कुछ नहीं कहा जा सकता। सारा दारोमदार विदेशी निवेशकों पर है। और, उनका रुख इससे तय होगा कि अमेरिका सिस्टम में डॉलर झोंकने का सिलसिला कब तक जारी रखता है। न तो विदेशी निवेशकों के रुख और न ही अमेरिका के केंद्रीय बैंक के फैसले पर हमारा कोई वश है। वश है तो इस बात पर कि पुराने ज़माने केऔरऔर भी

अपने-आप में तो हर कोई पूर्ण है। जानवर भी पूर्ण, इंसान भी पूर्ण। ओस की बूंद तक एकदम गोल। प्रकृति ने संतुलन का नियम ही ऐसा चला रखा है। पर बाहर से देखो तो सब कुछ अपूर्ण। गुमान तोड़कर देखने पर ही यह अपूर्णता नज़र आती है।और भीऔर भी

दोपहर साढ़े बारह बजे तक सब ठीक था। बाजार सपाट। न ऊपर, न ज्यादा नीचे। निफ्टी 5336.15 पर था, जबकि निफ्टी फ्यूचर्स 5353.55 के शिखर पर। फिर अचानक जाने क्या हुआ कि 2 बजकर 26 मिनट पर निफ्टी में वोल्यूम एकदम गिरकर गया और निफ्टी फ्यूचर्स सीधे 5000 की खाईं में जा गिरा। स्पॉट बाजार पर भी इसका सीधा असर पड़ा। आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ? छानबीन जारी है। तमाम डीलरों का कहना है कि ऐसाऔरऔर भी

हमारा मन कहीं और भागता है तो विचारों के जरिए हम उसे पकड़ते हैं, संतुलित करते हैं। इन विचारों का निरपेक्ष सत्य होना कतई जरूरी नहीं। इनकी तात्कालिक भूमिका है मन के भटकाव को रोकना।और भीऔर भी

इन दुनिया की खूबसूरती यह है कि यहां किसी की भी तानाशाही शाश्वत नहीं होती। यहां अंततः सामंजस्य और संतुलन ही चलता है। हर अति के अंदर से ही वे तत्व पनपते हैं जो उसका अंत कर देते हैं।और भीऔर भी