सहज स्वभाव जीवन के बहुतेरे क्षेत्रों में बड़े काम का हो सकता है। पर ट्रेडिंग में यह आपको कंगाल बना सकता है। कारण, ट्रेडिंग में कमाई के लिए दो चीजें ज़रूरी हैं। पहली, बाज़ार कैसे काम करता है, इसकी जानकारी। इसे हम सहज स्वभाव से नहीं जान सकते। इसके लिए परत-दर-परत हमें पैठना पड़ता है। दूसरी ज़रूरी चीज़ है अनुशासन। ट्रेडिंग के नियम बनाकर सख्ती से पालन। यह भी कतई सहज नहीं। अब पकड़ें मंगलवार की धार…औरऔर भी

लोग शेयर बाज़ार को भयंकर ललचाई नज़र से देखते हैं। खासकर तेज़ी के मौजूदा माहौल में वे गारंटी चाहते कि कोई शेयर कितना बढ़ेगा। बड़े मासूम हैं वो कि नहीं समझते कि बाज़ार में पक्की गारंटी जैसी कोई चीज़ नहीं होती। यहां रिस्क है जिसे सफलतम ट्रेडर को संभालना पड़ता है। पहले स्टॉप-लॉस से लोग इसे संभालते थे। अब रिस्क मैनेजमेंट के दूसरे तरीके भी आ गए हैं। घटी मुद्रास्फीति ने बाज़ार को संभाला है। अब आगे…औरऔर भी

हम सभी व्यक्तिगत ट्रेडर हैं। शेयर बाज़ार के घराती नहीं, बराती हैं। हम खुद कुछ नहीं बनाते। दूसरों के बनाए पर खेलते हैं। इन दूसरों में 9275 ब्रोकर, 51707 सब ब्रोकर, 1709 विदेशी संस्थागत निवेशक व उनके 6391 सब एकाउंट, 50 म्यूचुअल फंड, 207 वेंचर कैपिटल फंड और बीसियों बैंकों के साथ हज़ारों प्रोफेशनल ट्रेडर व एचएनआई शामिल हैं। इन सभी की मौजूदगी को ध्यान में रखते हुए ही हमें ट्रेडिंग करनी चाहिए। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

बहुत सारी सूचनाएं हमारे सामने रहती हैं। लेकिन हम उनका महत्व नहीं समझते तो देखते हुए भी गौर नहीं करते। वीवैप (वीडब्ल्यूएपी) ऐसी ही एक सूचना है जो स्टॉक एक्सचेंज पर हमें हर दिन मिलती है। इसका मतलब होता है कि वोल्यूम वेटेट एवरेज प्राइस। देशी व विदेशी संस्थाएं आमतौर पर इसी भाव पर अपने ऑर्डर पेश करती हैं। इसलिए हमारे लिए भी एंट्री का यह अच्छा स्तर हो सकता है। अब शुक्र की ट्रेडिंग का सूत्र…औरऔर भी

बाज़ार में सन्निपात-सा छा गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति भले ही अच्छी न हो। लेकिन मात्र चालू खाता घाटा (सीएडी) घटने के आंकड़े ने बाज़ार को उठाने का बहाना दे दिया। मोदी के आने का हल्ला मचाकर गुब्बारे को फुलाया जा रहा है। लेकिन शेयर बाज़ार की हर हरकत के पीछे मंशा मुनाफा कमाने की होती है। बाज़ी हमेशा बड़े ट्रेडरों के हाथ में होती है। हम फंसे नहीं, इस सावधानी के साथ बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

दिसंबर तिमाही के नतीज़ों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। लिस्टेड कंपनियों ने चालू वित्तीय साल की तीसरी तिमाही में कैसा कामकाज किया, इसका ध्यान रखना ज़रूरी है क्योंकि शेयरों के भाव भले ही छोटी अवधि में डिमांड-सप्लाई के संतुलन से प्रभावित होते हैं, लेकिन हैं वे कंपनी के कामकाज या कैश फ्लो की ही छाया। मूल काया ही चौपट होगी तो छाया को मिटना ही है। इसलिए नतीज़ों पर नज़र रखते हुए बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

यूं तो परिचित हैं हज़ारों। पर काम के दोस्त अक्सर 40-50 से ज्यादा नहीं होते। दरअसल इससे ज्यादा ज़रूरत भी नहीं। इसी तरह निवेश व ट्रेडिंग में हमें अपने व्यक्तित्व के हिसाब से स्टॉक्स चुनने चाहिए। ज्यादा से ज्यादा 40 कंपनियों में निवेश हो तो उनका अलग-अलग रिस्क कटकर मिट जाता है। ट्रेडिंग के लिए भी 20 स्टॉक्स बहुत होते हैं। इनसे गहरी पहचान हो तो कमाना आसान हो जाता है। अब करें नए साल-2014 का आगाज़…औरऔर भी

सरकार और ज्यादातर कंपनियों का वित्त वर्ष अप्रैल से। किसानों का नया साल मार्च-अप्रैल के बीच चैत्र से। लेकिन व्यापारियों का नव वर्ष दीवाली के बाद से शुरू होता है। सभी का अपना-अपना जीवन-चक्र। शेयर बाज़ार के ट्रेडर भी एक तरह के व्यापारी हैं। रणनीति होनी चाहिए कि थोक में खरीदो, रिटेल में बेचो। पर ज्यादातर ट्रेडर रिटेल के भाव खरीदते हैं और घबराकर थोक के भाव पर निकल जाते हैं। करते हैं संवत 2070 की शुरुआत…औरऔर भी

नोट छापना आसान है, कमाना नहीं। वरना हर कोई शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से जमकर कमा रहा होता। आम सोचवालों के लिए ट्रेडिंग से कमाई शेर के जबड़े से शिकार निकालने जैसा काम है। सामने बैठे हैं उस्तादों के उस्ताद, जो भीड़ की हर मानसिकता का इस्तेमाल बखूबी करते हैं। अक्सर कम सतर्क लोगों को छकाने के लिए झांसा/ट्रैप बिछाते हैं जो दिखता है शानदार मौका, लेकिन फंसाते ही निगल जाता है। अभी क्या है इनका ट्रैप…औरऔर भी

शराब, ड्रग्स या ट्रेडिंग की लत लग जाए तो बरबाद होने में वक्त नहीं लगता। खुशी की तलाश में निकले लोग अक्सर खुद को ही गंवा बैठते हैं। दरअसल, ट्रेडिंग का बुनियादी सूत्र है कि जिस भाव पर डिमांड सप्लाई से ज्यादा होती है, वहां से भाव चढ़ते हैं। इसकी उल्टी सूरत में गिरते हैं। हमें इन स्तरों का पता लगाकर खरीदना/बेचना होता है। इसलिए यहां एडिक्ट नहीं, एकदम मुक्त दिमाग चाहिए। अब हफ्ते की आखिरी ट्रेडिंग…औरऔर भी