जन आंदोलनों से जरूरी सुधारों का माहौल भर बनता है, सुधार नहीं होते। सुधारों को पक्का करना है तो राजनीति में उतरना अपरिहार्य है। इसके बिना सारा मंथन झाग बनकर रह जाता है। गुबार जरूर निकल जाता है, लेकिन समाज में सुधरता कुछ नहीं।और भीऔर भी

जो लोग सुधारों की हर गुंजाइश को परखते हुए बढ़ते हैं, वे एक दिन व्यापक क्रांति के संवाहक बन सकते हैं। लेकिन जो लोग सीधे क्रांति को लपकना चाहते हैं, वे अंततः जनता से कटकर अवसरवादी बन जाते हैं।और भीऔर भी

तुम कुछ भी कहो, मैं तो ठसक से यही बोलूंगा कि मैं जो भी करता हूं वह सही होता है। यह मेरा विश्वास है और विश्वास के किया गया काम गलत नहीं होता। गलत हुआ भी तो मैं ही इसे सुधारूंगा, तुम नहीं।और भीऔर भी