हर काम हर पल दुनिया में कहीं न कहीं होता रहता है। जीना-मरना, हंसना-रोना, मिलना-बिछुड़ना। अंतहीन छोरों से बंधी डोर उठती है, गिरती है। झूले या सांप नहीं, सागर की लहरों की तरह दौड़ती है जिंदगी।और भीऔर भी

निर्वात कभी स्थाई नहीं होता, न अंदर न बाहर। वो बस कुछ पलों के लिए होता है क्योंकि बनते ही उसे भरने का तेज क्रम शुरू हो जाता है। वायुमंडल में हवाओं का तूफान आ जाता है तो समुंदर में लहरों का भूचाल।और भीऔर भी