अच्छा काम किया जाए और उसका प्रचार न किया जाए तो वह एकतरफा प्यार जैसा है जिसका अंत दुख, अफसोस और एकाकीपन में ही होता है। अरे! सामने वाले को पता तो चले कि आप उससे प्यार करते हैं।और भीऔर भी

अगर हम जानते हैं कि हमें कहां जाना है और हम यह भी जानते हैं कि वहां पहुंचने के लिए क्या करना जरूरी है तो समझ लीजिए कि यात्रा शुरू हो गई और आधी मंजिल मिल गई। अब बस पहुंचना ही बाकी है।और भीऔर भी

हम किसी को या तो पूरा सही मान लेते हैं या एकदम खारिज कर देते हैं। या तो हां या न। खटाखट नतीजों पर पहुंचने की जल्दी में रहते हैं हम। लेकिन खुद के विकास के लिए यह अतिवादी ढर्रा ठीक नहीं है।और भीऔर भी

यहां सब लौकिक है, पारलौकिक कुछ नहीं। हम जिन प्रभावों की वजह देख नहीं पाते, दूसरे उसे पारलौकिक बताकर अपना लौकिक हित साधते हैं। वैसे भी पारलौकिक की सत्ता बराबर सिकुड़ती जा रही है।और भीऔर भी

वही-वही जुमले। वही-वही बात। बहते पानी में ऐसा हो नहीं सकता! वह तो निर्मल होता है। बास तो हमेशा ठहरे पानी से ही आती है। इसलिए देखें तो सही कि बातों की बास के पीछे आपका ठहराव तो नहीं!और भीऔर भी

नजर खराब हो तो कुछ साफ नहीं दिखता। नजरिया गलत हो तो घर से लेकर बाहर, छोटी से लेकर बड़ी चीज तक के बारे में इंसान गलत धारणाओं का शिकार रहता है। एक जगह सही तो सब जगह सही।और भीऔर भी

आदतों के बिना ज़िंदगी नहीं चलती। एकदम रसहीन बन जाती है। इसलिए आदतें तो डालनी ही पड़ती हैं। अब यह आप पर है कि आप खुद को अच्छी आदतों का गुलाम बनाते हैं या बुरी आदतों का।और भीऔर भी

हम काम हर कोई नहीं कर सकता। इसलिए हमें काम वही करना चाहिए जो हम सबसे अच्छा कर सकते हैं। बाकी औरों के लिए छोड़ दें। लेकिन आज ये छूट कहां! आज तो हम पैसे के लिए ही काम करते हैं।और भीऔर भी

सच तो सच है। हम जानें या न जानें, इससे उस पर फर्क नहीं पड़ता। सच चलायमान है। फिर भी वो खुद चलकर हमारे पास नहीं आता। अनुसंधान करना पड़ता है। तभी हम सच की मणि तक पहुंच पाते हैं।और भीऔर भी

तीन तरह के लोग होते हैं। एक, जिनके लिए कोई समस्या नहीं होती। दो, जो मानते हैं कि समस्या तो है, पर समाधान नहीं। तीन, जो मानते हैं कि समस्या है और इसे हल भी किया जा सकता है।और भीऔर भी