सपनों की तरह हमारी अंतःप्रेरणा भी कहीं आसमान से नहीं टपकती। वह हमारे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से संचित अनुभवों से निकलती है। इसलिए कोई अदृश्य प्रभाव जान उसे हमेशा सही मानने का कोई तुक नहीं है।और भीऔर भी