एक तरफ हमारी सरकार चीन के साथ बढ़ने व्यापार घाटे पर चिंता जता रही है। वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि जहां चीन सस्ते व परिष्कृत मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों से भारतीय बाजार को पाटे पड़ा है, वहीं हम चीन को मानव बाल जैसी अपरिष्कृत चीजें निर्यात कर रहे हैं। वाणिज्य राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि सरकार चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर चिंतित है। अप्रैल-जुलाई 2011 के चारऔरऔर भी

नवंबर महीने में देश का निर्यात साल भर पहले की तुलना में 17.99 फीसदी बढ़ा है। इस साल नवंबर में हमारा निर्यात 22.3 अरब डॉलर रहा है, जबकि नवंबर 2010 में यह 18.9 अरब डॉलर रहा था। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले छह महीनों की तेज रफ्तार के कारण अप्रैल से नवंबर तक के आठ महीनों में निर्यात की वृद्धि दर 33.2 फीसदी रही है। इस निर्यात वृद्धि में मुख्य योगदान पेट्रोलियम पदार्थों का रहाऔरऔर भी

चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अब तक हर महीने कुलांचे मारकर बढ़ रहे निर्यात की रफ्तार अक्टूबर में अचानक थम गई है। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर में हमारा निर्यात 19.87 अरब डॉलर रहा है जो अक्टूबर 2010 में हुए 17.93 अरब डॉलर से मात्र 10.82 फीसदी ज्यादा है। इससे पहले हमारे निर्यात के बढ़ने की दर अप्रैल में 34.42 फीसदी, मई में 56.93 फीसदी, जून में 46.45 फीसदी, जुलाईऔरऔर भी

कमजोर होती यूरोप मुद्रा यूरो और देश के भीतर कॉरपोरेट क्षेत्र व तेल कंपनियों की तरफ से डॉलर की मांग बढ़ती जा रही है तो रुपया गिरता चला जा रहा है। मंगलवार को एक डॉलर 50.76 रुपए का हो गया है जो 31 मार्च 2009 के बाद के 32 महीनों में रुपए का सबसे कमजोर स्तर है। सोमवार को यह डॉलर के सापेक्ष 50.285/295 रुपए पर बंद हुआ था। मंगलवार को रिजर्व बैंक की संदर्भ दर 50.5645औरऔर भी

पता नहीं कि यह निर्यात के आंकड़ों की अप्रत्याशित तेजी पर उठे संदेह का नतीजा है या यूरोपीय देशों में छाए संकट का परिणाम, लेकिन ताजा सूचना यह है कि अक्टूबर महीने में देश से हुआ निर्यात साल भर पहले से मात्र 10.8 फीसदी बढ़ा है। यह दो सालों के दौरान निर्यात में हुई सबसे कम वृद्धि दर है। इससे पहले अक्टूबर 2009 में हमारा निर्यात 6.6 फीसदी घट गया था। लेकिन उसके बाद से हर महीनेऔरऔर भी

साल 2015 तक भारत और चीन का आपसी व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह भरोसा जताया है कि वाणिज्‍य मंत्री आनन्‍द शर्मा ने। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में भारत-चीन का आपसी व्यापार 59.62 अरब डॉलर का रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले दस सालों में यह व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा है। 2000-01 में यह मात्र 2.3 अरब डॉलर था। इस तरह दस सालों में यह करीब 26 गुना हो गया है। बहरहाल,  वाणिज्यऔरऔर भी

चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से सितंबर तक की छमाही में देश से हुआ निर्यात 160 अरब डॉलर रहा है। यह पिछले साल की समान अवधि से 52 फीसदी ज्यादा है। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने राजधानी दिल्ली में बुधवार को मीडिया से बातचीत के दौरान यह जानकारी दी। हालांकि उन्होंने कहा कि ये मोटामोटी आंकड़े हैं। इसलिए अंतिम आंकड़े थोड़ा इधर-उधर हो सकते हैं। खुल्लर ने बताया कि अप्रैल-सितंबर 2011 के दौरान देश में हुआ आयातऔरऔर भी

यूरोप व अमेरिका में भले ही वित्तीय व आर्थिक संकट चल रहा हो, लेकिन भारत के निर्यात के बढ़ते जाने का कमाल जारी है। देश का निर्यात कारोबार पिछले कई माह से बढ़ता रहा है और अगस्त में भी साल भर पहले की तुलना में 44.25 फीसदी बढ़कर 24.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इस दौरान आयात भी साल भर पहले मुकाबले 41.82 फीसदी बढकर 38.35 अरब डॉलर रहा। इस तरह अगस्त में व्यापार घाटा (आयात से निर्यातऔरऔर भी

देश के निर्यात में जुलाई माह के दौरान 81.8 फीसदी की जोरदार वृद्धि दर्ज की गई है और यह 29.3 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने राजधानी दिल्ली में गुरुवार को मीडिया को यह जानकारी दी। जुलाई में आयात 51.5 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 40.4 अरब डॉलर का रहा है। माह के दौरान व्यापार घाटा 11.1 अरब डॉलर का रहा। खुल्लर का कहना था कि निर्यात का प्रदर्शन अच्छा रहा है। लेकिनऔरऔर भी