मां के गर्भ में खास वक्त तक पता नहीं चलता कि हम पुरुष बनेंगे या स्त्री। उसी तरह किसी संगठन में अल्प विकसित अवस्था तक हमारा खेमा तय नहीं होता। पर हैसियत बनते ही हम पक्षधर बन जाते हैं।और भीऔर भी

छुटपन में मां, फिर बाप और फिर शरीर ही हमारा खेवैया होता है। इसे शराब के क्षार, धूम्रपान व तंबाकू की घुटन और भोजन की अशुद्धता से अस्थिर रखेंगे तो वह सहजता से कैसे हमारा ख्याल रख पाएगा!और भीऔर भी

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के प्रतिभूमि घोटाले में कस्‍टोडियन की तरफ से जारी उन अधिसूचनाओं को सही ठहराया है जिसमें इस घोटाले में हर्षद मेहता की मां रसिला मेहता और भाभी रीना मेहता को शामिल बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई 2011 के आदेश में विशेष न्‍यायालय के आदेश के विरुद्ध उनकी अपील को रद्द कर दिया। इससे कंस्‍टोडियन द्वारा जारी जनवरी 2007 की अधिसूचनाओं की पुष्टि हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेशऔरऔर भी

प्रकृति से कैसे निपटना है, यह तो हर जीव की तरह हम मां के पेट से सीखकर आते हैं। समाज से निपटने की शुरुआती सीख हमें घर-परिवार, स्कूल व परिवेश से मिलती है। फिर जंग में हम अकेले होते हैं।और भीऔर भी

हमें अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि बाजार महंगा चल रहा है। बाजार (सेंसेक्स) जब 8000 अंक पर था, तब कोई स्पष्टता नहीं थी। तब से लेकर अब तक 18,000 अक की पूरी यात्रा के दौरान वे यकीन के साथ खरीदने के मौके नहीं पकड़ सके। इसके बजाय हर बढ़त पर वे बेचते रहे। देखिए तो सही कि इस दौरान एफआईआई की होल्डिंग 20 से घटकर 16 फीसदी और रिटेल की 10 से घटकर 8औरऔर भी

चीजें छोटी-छोटी करके ही बड़ी बनती हैं, तिल-तिल कर बढ़ती हैं। गर्भ में भ्रूण धीरे-धीरे आकार लेता है। औरों को कई महीने बाद पेट का आकार देखकर पता चलता है, लेकिन मां तो हर पल उसे पलता-बढ़ता देखती है।और भीऔर भी