बैंक ऑफ जापान अपने यहां मुद्रास्फीति को बढ़ाकर 2% कर देना चाहता है। इसके लिए वह नोटों की सप्लाई को दोगुना करने जा रहा है। वहां इस साल फरवरी में मुद्रास्फीति की दर बढ़ने के बजाय 0.70% घटी है। वह भी तब, जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य वस्तुओं, रहने के खर्च, परिवहन व संचार और संस्कृति व मनोरंजन का भार 71.5% (25 + 21 + 14 +11.5) है, जबकि ईंधन, बिजली व पानी का 7%, मेडिकलऔरऔर भी

अगर अप्रैल से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष के दौरान आप अपना पहला मकान खरीदते हैं और उसके लिए किसी बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी से 25 लाख रुपए तक का होमलोन लेते हैं तो आप ब्याज के रूप में चुकाए 2.50 लाख रुपए को अपनी करयोग्य आय से घटा सकते हैं। यानी, आपकी करयोग्य आय अगर 7.50 लाख रुपए है तो आपको पांच लाख रुपए पर ही इनकम टैक्स भरना पड़ेगा। अभी तक होमलोन मेंऔरऔर भी

अमेरिका में ब्याज की दर इस समय 0.25% है। शायद यही वजह है कि वहां के लोग कर्ज लेकर जीने के आदी हो चुके हैं। 1972 में अमेरिका में बैंकों द्वारा बांटा गया कर्ज देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 112% था। 2008 में यह 296% हो गया। उसके बाद के चार सालों में यह घटा है। लेकिन अब भी जीडीपी का 250% है। हां, अमेरिका में मुद्रास्फीति की मौजूदा दर भी मात्र 1.70% है। विकसितऔरऔर भी

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिनऔरऔर भी

माहौल जब देश के सबसे अहम सालाना दस्तावेज, बजट के आने का हो, तब खुद को किसी स्टॉक विशेष की चर्चा तक सीमित रखना ठीक नहीं लगता। वैसे भी सिर्फ शेयर या इक्विटी ही निवेश का इकलौता माध्यम नहीं है। आम लोग भी कहां शेयर बाजार में धन लगा रहे हैं! वित्तीय बाजार में उनके पसंदीदा माध्यम हैं निश्चित आय देनेवाले प्रपत्र। मुख्य रूप से एफडी। बांडों में निवेश का मौका मिले तो लोग कतई नहीं चूकते।औरऔर भी

केंद्र सरकार ने कल बुधवार को ही सभी मंत्रालयों को बोलचाल की हिंदी इस्तेमाल करने के लिए लंबा-चौड़ा सर्कुलर जारी किया है। इसमें बताया गया है, “यह काफी नहीं है कि लिखने वाला अपनी बात खुद समझ सके कि उसने क्‍या लिखा है। जरूरी तो यह है कि पढ़ने वाले को समझ में आ जाए कि लिखने वाला कहना क्‍या चाहता है।” लेकिन हकीकत में हमारे बाबू लोग इतना गोलगपाड़ा करते हैं कि किसी के कुछ समझऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था में 14.36 फीसदी, लेकिन रोजगार में 60 फीसदी से ज्यादा योगदान देनेवाली कृषि की किस्मत मानसून पर निर्भर है। साल भर की कुल बरसात का 80 फीसदी हिस्सा जून से सितंबर तक मानसून के चार महीनों में बरसता है। मानसून खराब तो कृषि खराब। कृषि खराब तो मांग का टोंटा और खाद्य पदार्थों की कीमत में आग। फिर उसे थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का चक्र। मानसून से अनाज व नकदी फसलों केऔरऔर भी

सदियों पहले बौद्ध भिक्षुओं का रिवाज था कि वे बारिश के चार महीनों में यायावरी छोड़, कहीं एक जगह ठेहा जमाकर बैठकर जाते थे। लगता है हम निवेशकों को भी कुछ महीनों के लिए हाथ-पैर बांधकर, लेकिन दिमाग खोलकर बैठ जाना चाहिए। असल में बाजार कहीं जा नहीं रहा। बस कदमताल किए जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अभी जिस तरह ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला चल रहा है, आर्थिक विकास दर में सुस्तीऔरऔर भी

देश के बैंक इस समय एसेट-लायबिलिटी में जबरदस्त मिसमैच या असंतुलन का सामना कर रहे हैं। 19 नवंबर से 17 दिसंबर तक के दो पखवाड़ों में उनकी जमाराशि में 49,817 करोड़ रुपए की कमी आई है, जबकि इसी दौरान उनके द्वारा दिए गए ऋण 81,806 करोड़ रुपए बढ़ गए हैं। इस अंतर को पूरा करने के लिए बैंक लगातार रिजर्व बैंक की चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएएफ) का इस्तेमाल कर रहे हैं और हर दिन सवा लाख करोड़औरऔर भी