किसी इंसान की बातों से तय नहीं होता कि वे दमदार हैं या कोरी बकवास। इसी तरह किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र या नारों से नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक संरचना से तय होता है कि वह सचमुच अपने कहे पर अमल कर पाएगी या नहीं।और भीऔर भी

हम प्रकृति से बने हैं। प्रकृति के सामने अक्सर बेबस हो जाते हैं। लेकिन समाज के सामने बेबसी बकवास है। समाज को हमने बनाया है तो इसे ठोंक-पीटकर बराबर दुरुस्त करते रहने का काम भी हमारा है।और भीऔर भी