न जाने कितने जिरहबख्तर बांधे फिरते हैं हम। कभी भगवान, कभी परिवार, कभी परंपरा तो कभी नौकरी का कवच कुंडल हमारी हिफाजत करता रहता है। बहादुर वो है जो इस सारी सुरक्षा को तोड़कर सीधे सच का सामना करता है।और भीऔर भी

इस दुनिया में हम ही हम नहीं, दूसरे भी हैं तमाम। इसलिए यहां समझौते करके ही चलना पड़ता है। अपने अहम को गलाकर दूसरे को स्वीकार कर चलना पड़ता है। और, इसकी शुरुआत होती है परिवार से।और भीऔर भी

भगत सिंह 23 साल ही जीकर अमर हो गए। 39 साल के जीवन में विवेकानंद दुनिया पर अमिट छाप छोड़ गए। ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपने लिए नहीं, उन अपनों के लिए जिए जो परिवार तक सीमित नहीं थे।और भीऔर भी

परिवार के लिए आप यकीनन मूल्यवान हैं। लेकिन अपना सच्चा सामाजिक मूल्य समझना हो तो बस इतना सोचकर देखें कि आपके बिना यह दुनिया कैसे चलती है और आपके न होने से कितना फर्क पड़ेगा।और भीऔर भी

जिंदगी में तमाम छोटी-छोटी चीजों से हमारा सुख व दुख निर्धारित होता है। इनमें से कुछ का वास्ता हमारे व्यक्तित्व, परिवार व दोस्तों से होता है, जबकि बहुतों का वास्ता सरकार व समाज के तंत्र से होता है।और भीऔर भी

अकेले दम पर धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा और शोहरत सब पाई जा सकती है। लेकिन पारिवारिक संबंधों की रागात्मकता के बिना वो खुशी नहीं मिल सकती है जो क्षीर सागर में विराजे विष्णु को हासिल थी।और भीऔर भी

इस दुनिया में परिवार, प्यार व चंद दोस्तों के अलावा हर कोई पहले अपना फायदा देखता है। इक्का-दुक्का अपवाद संभव हैं। लेकिन फाइनेंस की दुनिया में यह अपवाद नहीं, नियम है। इसलिए पूरा संभलकर।और भीऔर भी