सीमित अपने तक
भगवान पर ध्यान लगा हम अपने अंदर की शक्तियों और बाहर की ताकतों को साधते हैं। भगवान यहीं तक सीमित रहे तो बड़ा कल्याणकारी है। लेकिन, कोई जब दूसरों को खींचने के लिए भगवान का इस्तेमाल करने लगता है तो वह बड़ा विनाशकारी हो जाता है।और भीऔर भी
हम नहीं, वो भी
हम अपनी समस्याओं को लेकर इतने आक्रांत रहते हैं कि होश ही नहीं रहता कि दूसरे की समस्याएं क्या हैं। अरे बंधु! ध्यान रखें कि इस जहान में समस्याओं से मुक्त कोई नहीं। हां, सबकी समस्याओं की सघनता और स्तर जरूर अलग-अलग है।और भीऔर भी
सहजता ही समाधि
सहजता का ही दूसरा नाम समाधि है। चालाकी हमें असहज बनाती है। लेकिन बुद्धि से हम हर चालाकी को काटकर सहज बन सकते हैं। इतने सहज कि लोगों की चालाकी पर हमें गुस्सा नहीं, हंसी आएगी।और भीऔर भी
अंश और समग्र
थोड़े-थो़ड़े अंश में हम सब कुछ हैं। संत भी, अपराधी भी। बालक भी, वृद्ध भी। सांप भी, बिच्छू भी। बेध्यान न रहें तो अपना अंश बाहर दिखेगा और दूसरों का अंश अपने अंदर। ऐसा देखने से हर उलझन सुलझने लगती है।और भीऔर भी