दुनिया जंगल है और उसकी सारी राहें पत्तों से ढंकी हैं। बड़े होते ही मां-बाप का हाथ छोड़ राह की तलाश में जुट जाते हैं। सच्चा गुरु मिला तो मिल जाती है मंजिल। नहीं तो ताज़िंदगी भटकते रह जाते है।और भीऔर भी

दावाग्नि कितनी भी प्रबल हो, वह पेड़ों को तो जला डालती है, पर जड़ों को नहीं। लेकिन मीठी हवा सुलगा-सुलगाकर जड़ों को भी नष्ट कर देती है। कहा भी गया है कि धीमा ज़हर ज्यादा खतरनाक होता है।और भीऔर भी

कोई कितना ही रोके, चलनेवाले तो अपनी मंजिल और मौका तलाश ही लेते हैं। पानी अपनी डगर बना ही लेता है। हमारा काम बस इतना है कि समाज में जंगल की निरंकुशता न पले, अराजकता न चले।और भीऔर भी

आत्मा के बिना शरीर शव है और शरीर के बिना आत्मा भूत! लेकिन क्या उत्तरी ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव से अलग किया जा सकता है या पेड़ों से जंगल को? इसी तरह शरीर व आत्मा भिन्न हैं, पर अलग नहीं।और भीऔर भी