हर कोई अक्सर अपने कर्मं की सार्थकता के बारे में सोचता है। मैं भी कभी-कभी सोचता हूं कि जो काम कर रहा हूं, उसकी सार्थकता क्या है। नोट बनाने का लालच तो सब में है। लेकिन इस देश में बचानेवाले कितने हैं और इन बचानेवालों में भी अपने धन को जोखिम में डालने की जुर्रत कितने लोग कर सकते हैं? फिर आखिर मैं किसकी सेवा में लगा हूं? इन लोगों की हालत तो वही है कि गंजेड़ीऔरऔर भी