तथास्तु की यह सेवा जब पेड नहीं थी, तब भी हम यहां अच्छी व संभावनामय कंपनियों में निवेश की सलाह देते रहे हैं। ठीक दो साल पहले हमने यहां इनफोसिस में निवेश की सलाह दी थी। तब उसका शेयर 2865 रुपए पर था। अभी वो 3575 की ऊंचाई पर है। दो साल में 33% से ज्यादा बढ़त। यह है अच्छी कंपनियों में सही वक्त पर निवेश का कमाल। आज इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से ही जुड़ी एक स्मॉलकैप कंपनी…औरऔर भी

आपने भी देखा होगा कि किसी स्टॉक के बजाय लोगों की आम दिलचस्पी इसमें होती है कि बाज़ार कहां जा रहा है। जैसे कोई मिलने पर पूछता है कि क्या हालचाल है, उसी तरह शेयर बाज़ार से वास्ता रखनेवाले छूटते ही पूछ बैठते हैं कि सेंसेक्स या निफ्टी कहां जा रहा है। चूंकि सेंसेक्स में शामिल सभी तीस कंपनियां निफ्टी की पचास कंपनियों में शामिल हैं। इसलिए हाल-फिलहाल बाज़ार कहां जा रहा है, का मतलब होता हैऔरऔर भी

हम हिंदुस्तानी फालतू माथा फोड़ते हैं कि ग्रह-नक्षत्रों की चाल हमारे जीवन को कैसे चलाती है। लेकिन इस पर कम दिमाग लगाते हैं कि खुद हम इंसानों का सामूहिक बर्ताव क्या और कैसे गुल खिलाता है। शेयर बाजार में खरीदने व बेचनेवालों के सामूहिक मन को कैप्चर करता है परिष्कृत सॉफ्टवेयरों की मदद से टेक्निकल एनालिसिस। पर वो बस दशा बताता है, दिशा नहीं देता। दिशा जानने के सूत्र भिन्न हैं। बताएंगे बाद में। अभी हाल बाज़ारऔरऔर भी

शेयर बाज़ार दिमागदार शेरों के लिए है, कमज़ोर दिलवालों के लिए नहीं। यहां जो घबराया, समझो गया। जो डरा सो मरा। इसीलिए कहते हैं कि शेयर बाज़ार में अच्छे दिमाग से भी ज्यादा अहम है अच्छा नर्वस सिस्टम। अर्थव्यवस्था में जितना भी नया मूल्य बनता है, उसमें हिस्सेदारी का बाज़ार है यह। यहां लोकतंत्र है बराबर के जानकारों का। पर सूचनाओं और ज्ञान की विषमता इसे भीड़तंत्र बना देती है। देखें, क्या रहेगी आज बाज़ार की दशा-दिशा….औरऔर भी

मान्यता है कि शेयर बाजार लंबे समय में फायदा ही देता है। लेकिन यह कोई निरपेक्ष सच नहीं है। इसकी सच्चाई का फैसला ‘कहां और कैसे’ से तय होता है। मसलन, जापान का निक्केई सूचकांक बीस साल पहले अक्टूबर 1992 में 16767 अंक पर था। अगस्त 1993 में 21,027 और जून 2006 में 22,757 तक चला गया। लेकिन फिर गिरने का सिलसिला शुरू हुआ तो अभी अक्टूबर 2012 में 8596 अंक पर आ चुका है। बीस सालऔरऔर भी

कहा जा रहा है कि एफआईआई दुखी हैं। फंड मैनेजर परेशान हैं। हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। गार (जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल) और वोडाफोन जैसे सौदों पर पिछली तारीख से टैक्स लगाने से उनको भ्रमित कर दिया है। इस साल जनवरी से मार्च तक हर महीने भारतीय शेयर बाजार में औसतन तीन अरब अरब डॉलर लगानेवाले एफआईआई ठंडे पड़ने लगे हैं। सेबी के मुताबिक उन्होंने अप्रैल में अभी तक इक्विटी बाजार में 10.69 करोड़ डॉलर काऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने तय किया है कि वह शुक्रवार को सेकंडों के भीतर निफ्टी के 5353 से गिरकर 5000 तक पहुंच जाने की जांच करेगी। एनएसई भी सब कुछ ठीक होने के दावा करने के बावजूद शुरुआती जांच शुरू कर चुका है। इससे पहले दीवाली की मुहूर्त ट्रेडिंग पर बीएसई में भी यह करिश्मा हो चुका है। उससे पहले जून 2010 में रिलायंस का शेयर एक दिन 20 फीसदी का धक्का खा चुका है।औरऔर भी

दोपहर साढ़े बारह बजे तक सब ठीक था। बाजार सपाट। न ऊपर, न ज्यादा नीचे। निफ्टी 5336.15 पर था, जबकि निफ्टी फ्यूचर्स 5353.55 के शिखर पर। फिर अचानक जाने क्या हुआ कि 2 बजकर 26 मिनट पर निफ्टी में वोल्यूम एकदम गिरकर गया और निफ्टी फ्यूचर्स सीधे 5000 की खाईं में जा गिरा। स्पॉट बाजार पर भी इसका सीधा असर पड़ा। आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ? छानबीन जारी है। तमाम डीलरों का कहना है कि ऐसाऔरऔर भी

फिर वही हाल। लेकिन कल का उल्टा। दोपहर तक मामला सुस्त चल रहा था। फिर यूरोपीय बाजार से सकारात्मक रुझान मिला तो हमारा बाजार भी तेजी से बढ़ गया। लगातार चार दिन की बढ़त के बाद सेंसेक्स अब 17503.71 और निफ्टी 5332.40 पर है। सेंसेक्स आज 0.64 फीसदी तो निफ्टी 0.61 फीसदी बढ़ा है। अप्रैल के निफ्टी फ्यूचर्स का आखिरी भाव 5364 रहा है। 5370 से बस छह अंक पीछे। जानकार बताते हैं कि अगर बाजार कोऔरऔर भी

जब बाजार के प्रमुख खिलाड़ी लोकल नहीं, ग्लोबल हों तो देश की जमीन से उठी अच्छी लहरों को बाहर के झोंके उड़ा ले जाते हैं। ब्याज दरों में अप्रत्याशित कटौती से बाजार ऊपर-ऊपर चल रहा था। अमेरिका से भी बाजार के बढ़ने का आधार पीछे था। दस बजे तक निफ्टी 5342 तक चढ़ चुका था। लेकिन सूरज के सिर पर पहुंचते ही यूरोपीय बाजारों के कमजोरी के साथ खुलने के समाचार आ गए तो भारतीय बाजार भीऔरऔर भी