ऋण के बोझ और तरलता के संकट से जूझ रहे यूरो ज़ोन के देशों को उबारने के लिए यूरोपीय संघ 700 अरब यूरो का स्थाई वित्तीय सुरक्षा पैकेज देने को राजी हो गया है। माना जा रहा है कि ऋण संकट के चलते इन देशों पर मंडराते राजनीतिक अस्थायित्व के बादल छंट जाएंगे। नया राहत कोष, यूरोपीय स्थिरता प्रणाली (ईएसएम) 440 अरब यूरो के वर्तमान अस्थाई वित्तीय कवच, यूरोपीय वित्तीय स्थिरता कोष (ईएफएसएफ) की जगह ले लेगा।औरऔर भी

जिम रोजर्स अमेरिकी शेयर बाजार के बड़े नामी सटोरिये हैं। बड़बोलापन उनकी आदत है। लेकिन उन्होंने हाल ही में बिजनेस चैनल सीएनबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में ऐसी बात कही है जो किसी को सिर से पांव तक हिलाकर रख सकती है। उनका कहना है कि, “ब्रिटेन पूरी तरह दीवालिया हो चुका है।” बता दें कि जिम रोजर्स मशहूर निवेशक जॉर्ज सोरोस के साथ जुड़े रहे हैं और निवेश से करोड़ो डॉलर कमा चुके हैं। उनकाऔरऔर भी

तमाम अखबार, पत्र-पत्रिकाएं और बिजनेस चैनल भारतीय शेयर बाजार को लगी 1200 अंकों से ज्यादा की चपत की वजह वैश्विक कारकों में तलाश रहे हैं। लेकिन हमारा मानना है कि असली बात यह नहीं है। लेहमान ब्रदर्स के डूबने का मसला हो या उसके बाद के तमाम वैश्विक कारक हों, उन्होंने यकीकन कमजोर बाजारों को चोट पहुंचाई, लेकिन इनके बीच भारतीय बाजार ने पुरानी ऊंचाई फिर से हासिल कर ली और यही नहीं, दूसरी अर्थव्यवस्थाओं ने हमाराऔरऔर भी

कर्ज में डूबी आयरलैंड सरकार ने यूरोपीय संघ द्वारा हाल में गठित विशेष संकट कोष से मदद की पेशकश को दूसरी बार ठुकरा दिया है जिससे यूरो मुद्रा वाले देशों के सामने फिर ऋण संकट खड़ा हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अभी छह माह पहले ही यूरो क्षेत्र का देश पुतर्गाल (यूनान) दिवालिएपन की स्थिति में पहुंच गया था। उसके बाद यूरोपीय संघ ने ऐसी स्थिति में सदस्य देशों की मदद के लिए 750 अरब यूरोऔरऔर भी

बाजार पिछले दिनों दीवाली पर 21,000 अंक तक ऊंचा जाने के बाद से खुद को जमा रहा है। लेकिन कोरिया में ब्याज दरों के बढ़ने और आयरलैंड सरकार के 69 अरब डॉलर के डिफॉल्ट ने रिटेल निवेशकों के बीच कुछ हद तक अनिश्चितता पैदा कर दी है। फिर, राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले, टेलिकॉम घोटाले और आदर्श घोटाले जैसे राजनीतिक मामलों के साथ ही एलआईसी को 14,000 करोड़ रुपए के नुकसान की खबर ने भी निवेशकों के दिमागऔरऔर भी

चीजें पल-पल बदलती रहती हैं। शेयर बाजार के ट्रेडरों तक को यह बात ध्यान में रखनी पड़ती है। लेकिन जिन्हें निवेश करना है उनके लिए हमारा बाजार अभी कतई ऐसी दशा में नहीं पहुंचा है कि यहां एक-एक पल या एक-एक दिन का हिसाब रखना पड़े। बेफिक्र रहिए क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकासगाथा अभी कम से कम आजादी की 75वीं सालगिरह साल 2022 तक चलनी है। इस बीच दुनिया की पुरानी स्थापित अर्थव्यवस्थाएं डोलमडोल होती रहेंगी। लेकिनऔरऔर भी