लाभ कमाने की मंशा किसी भी समाज में इंसान को आत्मकेंद्रित, अनैतिक, यहां तक कि अपराधी तक बना सकती है। काश, हम दूसरे की भलाई के लिए ही काम करते और उसी में हमारा भी भला हो जाता।और भीऔर भी

थोड़े-थो़ड़े अंश में हम सब कुछ हैं। संत भी, अपराधी भी। बालक भी, वृद्ध भी। सांप भी, बिच्छू भी। बेध्यान न रहें तो अपना अंश बाहर दिखेगा और दूसरों का अंश अपने अंदर। ऐसा देखने से हर उलझन सुलझने लगती है।और भीऔर भी