कहां है गरीबी, कहां है दरिद्रता और बेरोजगारी? मोदी सरकार कहती है कि उसने 2013-14 से 2022-23 के बीच के दस सालों में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाल लिया है। अब देश में 29.17% के बजाय केवल 11.28% लोग ही गरीब रह गए हैं। भारतीय शेयर बाज़ार का पूंजीकरण सितंबर के बाद बराबर गिरने के बावजूद अब भी जीडीपी का 130% है। देश में 21 करोड़ पंजीकृत निवेशक और 11.5 करोड़ अलग या यूनीक डीमैट एकाउंट। साथ ही म्यूचुअल फंड फोलियो 22.50 करोड़ तक पहुंच चुके हैं जिनमें से 5.3 करोड़ अलग म्यूचुअल फंड खाते। लेकिन देश में डीमैट खातों की संख्या बढ़ रही है, म्यूचुअल फंड फोलियो और एसआईपी बढ़ते जा रहे हैं तो इसकी खास वजह यह नहीं कि करोड़ों लोगों के पास इफरात धन आ गया है, बल्कि यह है कि वे विकासगाथा से बाहर छूट गए हैं, उनके कमाई के साधन चुकते जा रहे हैं और वे घटती कमाई की भरपाई के लिए कोई न कोई माध्यम खोजने में लगे हैं। वे रोज़ी-रोज़गार के लिए हर जगह हाथ-पैर मारकर थक गए हैं और अब शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड के सहज-सुलभ साधन को आजमाना चाहते हैं। इसलिए देश के नीति-निर्माताओं को पूंजी बाज़ार में बढ़ती भागीदारी पर चहकने के बजाय इस क्रूर ज़मीनी हकीकत की गंभीरता को समझना चाहिए। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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