3-जी नीलामी के साइड-इफेक्ट

जगन्नाधम तुनगुंटला

हाल में 3 जी या तीसरी पीढ़ी के स्पेक्ट्रम की नीलामी इतनी कामयाब रही कि सरकार को इससे करीब 67,700 करोड़ रुपए मिल सकते हैं, जबकि बजट अनुमान करीब 35,000 रुपए का ही था। यह तकरीबन दोगुनी रकम है। इसके अलावा सरकार को 2 जी स्पेक्ट्रम से वन-टाइम फीस के रूप में 14,500 करोड़ रुपए मिल सकते हैं हालांकि इस पर अभी विवाद चल रहा है जिसका कोई समाधान नहीं निकला है। इस तरह केवल स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार के खजाने में आ सकते हैं पूरे 82,200 करोड़ रुपए। यह सरकार के लिए जबरदस्त कामयाबी की बात है। लेकिन इसका एक अनचाहा शिकार हो सकती है सरकारी कंपनियों के विनिवेश की प्रक्रिया जिसका सीधे तौर पर टेलिकॉम क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं है।

अब जरा बड़ी व व्यापक तस्वीर पर नजर डाली जाए। बजट अनुमानों के मुताबिक सरकारी कंपनियों के शेयरों की बिक्री या विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य था और 3 जी नीलामी से लगभग 35,000 करोड़ रुपए जुटाने का। इस तरह कुल रकम बनती है 75,000 करोड़ रुपए। अब 3 जी की सफल नीलामी का मतलब यह हुआ कि सरकार केवल इसी से 3 जी व विनिवेश के सम्मिलित लक्ष्य से ज्यादा, 82,200 करोड़ रुपए जुटा लेगी। इससे स्वाभावित तौर पर सरकार विनिवेश को लेकर थोड़ी बेपरवाह हो सकती है, ढीली पड़ सकती है क्योंकि बजट लक्ष्य तो उसका पूरा हो ही गया है।

दूसरे शब्दों में उसे विनिवेश को पूरा करने की कोई हड़बड़ी नहीं होगी। वह आराम से जब सही समझेगी तब सरकारी कंपनियों के शेयर बेचने का फैसला कर सकती है। यह सरकार के लिए बडी राहत व सुकून की बात है। खासकर तब, जब यूरोप पर छाए ऋण संकट की वजह से पूंजी बाजार में कमजोरी व अनिश्चितता का आलम है। ऐसे माहौल में विश्व स्तर पर देखें तो तमाम पब्लिक इश्यू या तो टाल दिए गए हैं या रोक दिए गए हैं या उनका मूल्य घटा दिया गया है। इसलिए सरकार को 3 जी नीलामी से जिस तरह की तसल्ली मिली है, उसमें उसे विनिवेश की प्रक्रिया को धीमा करने का विकल्प मिल गया है।

अगर इसके बावजूद वह अभी ही विनिवेश करने का आमादा रहती है तो उसे ज्यादा से ज्यादा दबा हुआ मूल्याकंन ही मिल सकता है क्योंकि जिस तरह के पब्लिक इश्यू लाए जाने हैं, उनका आकार भी काफी बड़ा है। इसलिए पूरी संभावना इसी बात की है कि सरकार विनिवेश के जरिए अपनी आस्तियां बेचने के काम को आगे टाल देगी। वह उस वक्त का इंतजार करेगी जब बाजार की हालत ठीकठाक हो जाए और सरकारी कंपनियों को बाजार से अच्छा मूल्य मिल सके।

इसलिए मेरा आकलन है कि 3 जी नीलामी विनिवेश का पूरा खेल ही बदल सकती है। यह विचित्र बात लग सकती है, लेकिन यह हकीकत है। इस दौरान विनिवेश विभाग के अफसरान लंबी छुट्टियां मना सकते हैं। और, वे इसके हकदार भी हैं क्योंकि याद कीजिए बीते एक साल में उन्होंने कितनी मेहनत की है। आखिरकार वे एनएसपीसी का आईपीओ, ऑयल इंडिया का आईपीओ, एनटीपीसी का एफपीओ, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन का एफपीओ, यूनाइटेड बैंक का आईपीओ, एनएमडीसी का एफपीओ और एसजेवीएनएल का आईपीओ तो सफलतापूर्वक ला ही चुके हैं।

लेखक जानीमानी ब्रोकर फर्म एसएमसी कैपिटल के इक्विटी प्रमुख हैं।

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