यूलिप स्कीमों पर सेबी का फरमान

जीवन बीमा कंपनियों के यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) पर नियंत्रण का झगड़ा शुक्रवार को अपने चरम पर पहुंच गया, जब सेबी ने साफ-साफ कह दिया कि उसके पास पंजीकरण कराए बगैर कोई बीमा कंपनी यूलिप या ऐसा कोई भी उत्पाद नहीं ला सकती है जिसमें बीमा के अलावा निवेश का भी हिस्सा हो। पूंजी बाजार नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्णकालिक सदस्य प्रशांत सरन की तरफ से सुनाए गए 11 पेजों के आदेश में बीमा कंपनियों के एक-एक तर्क का ब्योरेवार जवाब देते हुए कहा गया है कि हर यूलिप स्कीम में निवेश का हिस्सा होता है। निवेश का हिस्सा पूंजी बाजार के जोखिम से जुड़ा होता है और चूंकि इस मामले में नियंत्रण और निवेशकों के हितों की रक्षा करने का अधिकार सेबी के पास है, इसलिए कोई भी यूलिप उत्पाद लाने से पहले उसके पास उसका रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है।

इससे पहले रिजर्व बैंक में रह चुके प्रशांत सरन ने अपने आदेश में कहा है कि बीमा कंपनियों का कहना है कि मूलतः जीवन बीमा का पहलू रखनेवाले यूलिप उत्पादों को कहीं से भी प्रतिभूति या सिक्यूरिटी की परिभाषा में नहीं लाया जा सकता। लेकिन सेबी एक्ट की कई धाराओं के मुताबिक यूलिप में बीमाधारक को दी गई यूनिटें प्रतिभूति मानी जाएंगी। उन्होंने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि बीमा क्षेत्र का नियामक अलग है और बीमा एक्ट के तहत आईआरडीए के पास ही बीमा कंपनियों के नियंत्रण का अधिकार है। उन्होंने अपने आदेश में कहा है कि एक नियामक के अधीन होने का मतलब यह नहीं होता कि अगर उत्पाद का कोई पहलू संसद के कानून के तहत बनाए गए  दूसरे नियामक के अधीन आता है तो उसकी मंजूरी न ली जाए।

उन्होंने कहा है कि यूलिप उत्पादों में निवेश का हिस्सा किसी म्यूचुअल फंड जैसा है। उसमें बाकायदा फंड मैनेजमेंट और मैनेजर होते हैं। बीमा कंपनियां निवेशक से इस सेवा का शुल्क भी लेती हैं। इसलिए उन्हें सेबी के पास अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की शर्त से बरी नहीं किया जा सकता। वैसे भी बीमा  कंपनियां यूलिप के दस्तावेजों में कहती हैं कि इसमें निवेश का सारा जोखिम पॉलिसीधारक का है। ऐसे में पॉलिसीधारक के निवेश को बिना किसी संरक्षण के कैसे छोड़ा जा सकता है।

प्रशांत सरन के आदेश में बताया गया है कि सेबी की तरफ से 14 बीमा कंपनियों को इस बाबत नोटिस जारी किए गए थे। इनमें देश में सक्रिय 23 जीवन बीमा कंपनियों में से नौ कंपनियों – इंडिया फर्स्ट, स्टार यूनियन दायची, सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेंस,  डीएलएफ प्रामेरिका, केनरा एचएसबीसी, फ्यूचर जनराली, आईडीबीआई फोर्टिस, श्रीराम लाइफ इंश्योरेंस और एलआईसी को छोड़कर बाकी सभी कंपनियों के नाम हैं। एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ को सेबी का नोटिस सबसे पहले 14 दिसंबर 2009 को जारी किया गया था, जबकि बाकी 13 कंपनियों को 15 जनवरी 2010 को नोटिस भेजे गए।

आदेश के मुताबिक बीमा कंपनियों ने अपने जवाब के साथ कहा था कि उनको अलग से सुनने का भी मौका दिया जाए। लेकिन सेबी ने हर पहलू को देखने के बाद पाया कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। चूंकि सभी कंपनियों को भेजे गए नोटिस कमोबेश एक जैसे थे और सबका जबाव भी लगभग एक-सा है, इसलिए सभी का सामूहिक प्रत्युत्तर दिया जा रहा है। अलग-अलग कंपनी को स्पष्टीकरण भेजने की जरूरत नहीं है। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य प्रशांत सरन ने अपने आदेश में तफ्सील से बताया है कि कैसे यूलिप में जीवन बीमा के लिए प्रीमियम से मामूली रकम काटी जाती है, जबकि अधिकतम हिस्सा म्यूचुअल स्कीमों की तरह बाजार में निवेश किया जाता है। सेबी का यह आदेश बेहद पठनीय और दिलचस्प है। इसे अलग से पढ़ा जाना चाहिए।

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