शेरदिल ही लेंगे इस बाजार से लोहा

बाजार कभी नहीं मरता है। मरता है आपका वो विश्वास जो फंडामेंटल्स या मूलाधार के बेजान-बेमानी हो जाने से खंड-खंड बिखर चुका होता है। टेक्निकल एनॉलिस्ट अक्सर उसी वक्त बिक्री की कॉल देते हैं जब सब कुछ पहले से धराशाई हो चुका होता है और खरीदने को तब कहते हैं जब कल की बात कोई सोच ही नहीं रहा होता। ऐसे माहौल में डर हावी हो जाता है और निवेशक इस तरह लुटते हैं जैसे वे पैदा ही इसी दिन के लिए हुए हों। दूसरा मसला भारी उधार लेकर निवेश करने या ओवर लीवरेजिंग का है।

मैंने कम से कम 100 एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) ग्राहकों को पिछले तीन दिनों में निफ्टी और 5 से 6 स्टॉक में जमकर खेलने को प्रेरित किया। नतीजा यह है कि उन्होंने झोली भर कर मुनाफा कमाया है। मेरा और मेरी टीम का एकमात्र सिद्धांत यह है कि औरों की कमजोरी को अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल करो। किसी भी वक्त इन निवेशकों ने ज्यादा उधार लेकर पैसे नहीं लगाए और जरूरत पड़ी तो पोजीशन को होल्ड करके भी रखा।

अमेरिकी बाजार में टेक्निकल ग्लिच (समस्या) आई और डाउ जोंस 1000 अंक लुढ़क गया। हालांकि बाद में 700 अंकों के करीब संभल भी गया। यह बात साबित करती है कि कंप्यूटराइज्ड सिस्टम को दुनिया में कहीं भी अपने हिसाब से उलटफेर की जा सकती है और कंप्यूटर इंसान की अहमियत को कभी खत्म नहीं कर सकते।

पुर्तगाल, आयरलैंड, ग्रीस व स्पेन (पिग्स) की समस्या पर बहुत हो-हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है। यह यूरोपीय संघ का सिरदर्द है और वहां के लोग इसका समाधान निकालेंगे क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई चारा ही नहीं है। एशिया के साथ-साथ दुनिया भर के बाजारों में इस पर कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया हो रही है। वैसे, मुझे मालूम है कि मंदड़ियों की ताकतवर लॉबी अपने फायदे के लिए इस मसले का उपयोग तबाही मचाने में करना चाहती है।

देखिए, हर दिन कोई न कोई तो जीतता ही है। लेकिन यकीन मानें, इससे धारा की दिशा नहीं बदलती। पानी तो एक ही दिशा में बहता है और तेजड़ियों की भी एक ही दिशा होती है। इन सब बाधाओं का इस्तेमाल तेजड़िए अपनी खरीद बढ़ाने में करते हैं। यह बात हम तब से देख रहे हैं जब बीएसई सेंसेक्स 8000 अंक के स्तर पर चला गया था।

आप चाहे जैसा सोचें, बाजार को ऊपर जाना है और वह ऊपर जाकर रहेगा। यह बाजार असल में कमजोर खिलाड़ियों के लिए है ही नहीं। यह ऐसे शेरदिल निवेशकों व ट्रेडरों के लिए है जो बाजार की गहराई समझ सकते हैं और जोखिम उठाने को तैयार हैं। उन्हें ही इस सबसे खतरनाक और तूफानी बाजार में हाथ डालना चाहिए।

जो इस तरह के झंझावात और तीखी गिरावट से साफ बचकर निकलेंगे, वे ही तेजी के अगले दौर का फल चख पाएंगे। जो अभी के दौर में भारी ट्रेडिंग के शिकार बन जाएंगे, वे लंबे अरसे तक बाजार में उतरने के काबिल ही नहीं रह जाएंगे।

भारतीय बाजार के बारे में मेरे नजरिए व मान्यता में कोई बदलाव नहीं आया है। जैसे ही विश्व बाजार की हालत सामान्य होगी, हमारे बाजार फिर नीचे का रुख करने का कोई मौका ही देंगे।

हम निःस्वार्थ भाव से औरों को खुशी देने की कोशिश करते हैं तो उसी क्षण से हमारी अपनी ज़िंदगी के खुशहाल होने की शुरुआत हो जाती है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है लेकिन फालतू के वैधानिक लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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