घरेलू अर्थव्यस्था के साथ ही देश का विदेशी व्यापार भी अब ढर्रे पर आ गया लगता है। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी अद्यतन आंकड़ों के अनुसार मार्च 2010 में हमारा निर्यात डॉलर में 54.1 फीसदी और रुपए में 36.9 फीसदी बढ़ा है। मार्च 2009 में भारत का निर्यात 1291.6 करोड़ डॉलर (66,169 करोड़ रुपए) था, जबकि मार्च 2010 में यह 1990.8 करोड़ डॉलर (90573 करोड़ रुपए) रहा है। लेकिन अगर पूरे वित्त वर्ष की तुलना करें तो 2009-10 में यह पिछले वर्ष 2008-09 की बनिस्बत डॉलर में 4.7 फीसदी और रुपए में 0.7 फीसदी घट गया है। 2008-09 में हमारा कुल निर्यात 18529.5 करोड़ डॉलर (8,40,754 करोड़ रुपए) था, जबकि 2009-10 में यह 17657.4 करोड़ डॉलर (8,35,264 करोड़ रुपए) दर्ज किया है। जाहिर है पूरे साल में हमारे निर्यात पर वैश्विक मंदी का असर पड़ा है और मार्च में इसमें हुई बढ़त ने साफ कर दिया है कि अब यह मंदी खत्म होने लगी है।
इधर हमारे आयात भी बढ़ने लगे हैं। हालांकि आयात का अच्छा-खासा हिस्सा पेट्रोलियम तेल का होता है। लेकिन आयात बढ़ने से पता चलता है कि देश में औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। मार्च 2010 में देश में 2773.3 करोड़ डॉलर (1,26,175 करोड़ रुपए) का आयात हुआ है जो मार्च 2009 के आयात 1659.7 करोड़ डॉलर (85,022 करोड़ रुपए) से डॉलर में 67.1 फीसदी और रुपए में 48.4 फीसदी अधिक है। अप्रैल 2009 से मार्च 2010 तक के वित्त वर्ष में देश में कुल आयात 27868.1 करोड़ डॉलर (13,18,188 करोड़ रुपए) का रहा है, जबकि ठीक पहले के वित्त वर्ष 2008-09 में यह 30369.6 करोड़ डॉलर (13,74,434 करोड़ रुपए) था। इस तरह सालाना तुलना में आयात में डॉलर के लिहाज से 8.2 फीसदी और रुपए के लिहाज से 4.1 फीसदी कमी आई है। इस अंतर से यह भी पता चलता है कि विदेशी व्यापार में रुपए-डॉलर की विनिमय दर कितना असर डालती है।
मार्च में हुए कुल आयात में से 773 करोड़ डॉलर का पेट्रोलियम तेल और 2000.3 करोड़ डॉलर का गैर-तेल आयात हुआ है। इस तरह हमारे कुल आयात का करीब 28 फीसदी खर्च पेट्रोलियम तेलों पर हुआ है। मार्च में पेट्रोलियम तेल आयात में 85.2 फीसदी और गैर-तेल आयात में 61 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2009-10 में हमारा व्यापार घाटा 10210.6 करोड़ डॉलर का रहा है जो वित्त वर्ष 2008-09 के व्यापार घाटे 11840.1 करोड़ डॉलर से 1629.5 डॉलर या 13.76 फीसदी कम है।