कहां है मंज़िल

“पहले कहा जाता था कि जिसकी कोई मंजिल नहीं होती, वह कोई भी राह पकड़कर, लहरों पर सवार होकर कहीं न कहीं पहुंच जाता है। लेकिन आज की हकीकत यह है कि जिसकी कोई मंजिल नहीं होती, कोई ध्येय नहीं होता, कोई भी राह या लहर उसे कहीं नहीं पहुंचाती।”

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