संपदा और शरीर

शरीर जरूरत से ज्यादा नहीं पचा सकता। इसी तरह कोई भी शख्स अपने पास जरूरत से बहुत-बहुत ज्यादा नहीं रख सकता। उसे अतिरिक्त संपदा को सामाजिक स्वरूप देना ही पड़ता है। यही प्रकृति का नियम है।

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