भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने साल 2003 से 2005 के दौरान हुए आईपीओ घोटाले में ब्रोकर फर्म व डीपी (डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट) मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज को एक कंसेंट ऑर्डर के तहत बरी कर दिया है। यह कंसेंट ऑर्डर पारित तो 6 मई को हुआ था, लेकिन इसे सार्वजनिक सोमवार 10 मई को किया गया।
मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज के खिलाफ सेबी की कार्यवाही अप्रैल 2006 से ही चल रही थी। लेकिन जनवरी 2010 में ब्रोकर फर्म ने कंसेंट ऑर्डर के जरिए मामले को सुलटाने की अर्जी लगा दी। इसके बाद सेबी की हाई पावर्ड एडवाइजरी कमेटी (एचपीएसी) ने 5 लाख रुपए का सेटलमेंट चार्ज तय किया। फर्म ने इस रकम का भुगतान 22 अप्रैल को चेक के जरिए कर दिया और अब सेबी ने मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज के खिलाफ आईपीओ अनियमितता के मामले में चल रही सारी कार्यवाही व जांच खत्म कर दी है।
असल में कंसेंट ऑर्डर सेबी को संसद के जरिए मिला ऐसा अधिकार है जिससे वह मामूली दंड या कार्रवाई से कानून तोड़नेवाले को बरी कर देती है। मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज सेबी में पंजीकृत डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डीपी) हैं और उसका जुड़ाव दोनों डिपॉजिटरी संस्थाओं एनएसडीएल और सीडीएसएल से है। उस पर आरोप था कि उसने 2003 से 2005 के दौरान 697 ऐसे डीमैट खाते खोले थे, जिसका पता समान था। सेबी ने पहली नजर में पकड़ लिया कि इस डीपी ने खातों को खोलने में अनिवार्य केवाईसी (नो योर क्लाएंट) मानकों का पालन नहीं किया है।
इसके बाद सेबी ने 27 अप्रैल 2006 को एक अंतरिम एक्स-पार्टी आदेश जारी कर मोतीवाल ओसवाल सिक्यूरिटीज को अगले आदेश तक कोई भी नया डीमैट खाता खोलने से रोक दिया। सेबी का एक जांच अधिकारी मामले को देखने लगा। उसने 7 फरवरी 2007 को इसके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। 3 अप्रैल 2007 को फर्म ने इसका जवाब दाखिल कर दिया। इसके करीब डेढ़ साल बाद 23 अक्टूबर 2009 को जांच अधिकारी ने पाया कि फर्म पर लगाए गए आरोप सही हैं और सिफारिश की कि सीडीएसएल के डीपी के बतौर काम करने का उसका लाइसेंस सात दिनों (क्या बात है!!!) रद्द कर दिया जाए। 3 नवंबर 2009 को फर्म को एक और कारण बताओ नोटिस कर पूछा गया कि क्यों उन पर दंड लगा दिया जाए। (क्या विनम्रता है!!!)
यह सब कार्यवाही चल ही रही थी कि मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज ने 5 जनवरी 2010 को एक पत्र भेजकर कंसेंट ऑर्डर के जरिए मामले को सुलटाने का आवेदन कर दिया। 4 फरवरी 2010 को उसने नया पत्र भेजा। इसके बाद सेबी की उच्चाधिकार सलाहकार समिति (एचपीएसी) ने 5 लाख रुपए के भुगतान का आदेश पारित किया। मोतीलाल ओसवाल सिक्यूरिटीज ने आईपीओ अनियमितता का आरोप न तो स्वीकार किया और न हीं उससे इनकार किया। बस, 5 लाख रुपए चेक से जमा करा दिए और सेबी ने उसे सारे मामले से रफा-दफा कर दिया है। यह किस्सा बताता है कि पूंजी बाजार में अनियमितता करनेवालों, कानून तोड़नेवालों और आम निवेशकों के हितों से खिलवाड़ करनेवालों को हमारा कानून कितनी आसानी से बाइज्जत बरी करने के बाद घर तक छोड़ने जाता है।