कांग्रेस अब भी जेपीसी की मांग पर राजी नहीं

देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरे के पूरे सत्र में हंगामे और शोरगुल के अलावा एक भी काम नहीं हुआ। 9 नवंबर से शुरू और 13 दिसंबर को समाप्त हुए शीत्र सत्र ने संसद में गतिरोध का नया रिकॉर्ड बना दिया है। लेकिन सत्तारूढ़ दल विपक्ष की इस मांग को अब भी मानने को तैयार नहीं है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच संसदीय समिति (जेपीसी) से कराई जाए।

यूपीए सरकार की अगुआ पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को कहा कि सरकार के पास न तो कुछ छिपाने के लिए है न ही कुछ डरने के लिए। उन्होंने राजधानी दिल्ली में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में पार्टी सांसदों को संबोधित करते हुए विपक्ष, खासकर भाजपा पर दोहरे मापदंड और दोहरी बात करने का आरोप लगाया। उन्होंने विपक्ष को संसद की कार्यवाही बाधित करने और स्पेक्ट्रम मुद्दे का राजनीतिकरण करने का दोषी ठहराया। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष की बात से साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पूछताछ का सामना न करना पड़े, इसीलिए जेपीसी जांच की मांग पर सरकार ने इतना अड़ियल रुख अपना रखा है।

सोनिया गांधी ने जेपीसी की मांग का सीधा उल्लेख किए बिना कहा, ‘‘आप यह देखेंगे कि समस्या का कई तरह से समाधान किया जा रहा है। पहला, पीएसी (स्थाई संसदीय समिति) इसकी जांच कर रही है। दूसरा, सीबीआई की जांच चल रही है और तीसरा कि एक पूर्व न्यायाधीश प्रशासनिक व प्रक्रियागत खामियों को देख रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि सरकार मामले की तह तक जाने के लिए कटिबद्ध है और यह कहना बेतुका होगा कि सरकार कुछ छिपा रही है या जांच से भाग रही है।

उनका कहना था, ‘‘हमारी चिंता यह है कि हमें पीएसी और सीबीआई जैसी स्थापित संस्थाओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और न ही हमें ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे प्रधानमंत्री की संस्था की गरिमा कम हो। हम राजनीतिक उद्देश्यों के लिए संस्थाओं को कुर्बान नहीं कर सकते।’’ ध्यान दें कि यहां कांग्रेस प्रमुख ने प्रधानमंत्री की संस्था की गरिमा का जिक्र किया है। असल में जेपीसी के पास ही यह अधिकार है कि वह पूछताछ के लिए प्रधानमंत्री तक को बुला सकती है। पीएसी तो केवल खातों की जांच करती है। पीएसी के अध्यक्ष इस समय बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी हैं।

विपक्ष, खासकर बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के चलते भी संसद की कार्यवाही नहीं चल सकी। बता दें कि इस शीत सत्र में संसद में पहली बार ऐसा हुआ है जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष ने लगातार 22 दिन तक संसद की कार्यवाही पूरी तरह ठप कर दी। विपक्ष ने 64 करोड़ रूपए के बोफोर्स तोप सौदे के समय संसद में हुए 19 दिन के भारी हंगामे को भी पीछे छोड़ दिया। बोफोर्स मामले में संसद की कार्यवाही में 45 दिन व्यवधान तो पड़ा लेकिन 19 बैठकों की कार्यवाही ही पूरी तरह ठप रही। उस समय संसद की कार्यवाही दो सत्रों में बाधित हुई थी, लगातार एक सत्र में नहीं। संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने भी सोमवार को खुद कहा कि बोफोर्स के समय भी संसद इस प्रकार ठप नहीं हुई थी, जैसी इस बार हुई है।
केतन पारेख मामले में संसद की कार्यवाही करीब आठ दिन तक ठप रही थी जबकि तहलका रक्षा सौदे में संसद में 13 मार्च 2001 के बाद नौ दिन तक कोई कामकाज नहीं हुआ था और बजट सत्र के मध्यावधि अवकाश के बाद संसद एक बार फिर से एक सप्ताह तक ठप रही थी। गौरतलब है कि इस बार 9 नवंबर को शीत्र सत्र के पहले दिन राज्यसभा में वर्तमान सदस्य के निधन के चलते कामकाज नहीं हुआ। लोकसभा में बस उसी दिन शांति रही। बाकी हर दिन विपक्ष कार्यवाही शुरू होने के तुरंत बाद हंगामा खड़ा कर देता था। उसकी मांग तो तब हवा मिल गई जब सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में 2जी स्पेक्ट्रम से देश को 1.76 लाख करोड़ रुपए के नुकसान की बात कह दी।

इसके बाद तो विपक्ष को संभालना मुश्किल हो गया। संसद के इस शीत सत्र को चलाने में लगभग डेढ़ अरब रूपए का खर्चा आया जबकि दोनों सदनों में 23 बैठकों के दौरान मुश्किल से दस घंटे कार्यवाही चली, वह भी भारी हंगामे और नारेबाजी के बीच।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *