निकालते क्यों नहीं निठल्ला निवेश!

हमारी सोच यही है कि जो मिल जाता है, उसे हम मिट्टी समझते हैं जो खो जाता है, उसे सोना। शेयर बढ़ जाए तो उससे उतनी मोहब्बत नहीं होती और हम उसे आसानी से बेचकर निकल लेते हैं। लेकिन गिर जाए तो इतना सदमा लगता है कि जान ही निकल जाती है। फिर भी मोहब्बत वैसी, जैसी बंदरिया अपने मरे हुए बच्चे से करती है। सीने से चिपकाकर दिनोंदिन डोलती रहती है। यह निपट भावना है, बुद्धिमानी नहीं। और, दुनिया में भले ही भावनाओं की अलग जगह हो, शेयर बाजार में सिर्फ और सिर्फ बुद्धि चलती है। शतरंज की बाजी कोई भावना से नहीं जीतता।

यूं ही कुछ छिटपुट उदाहरण ले लेते हैं। इसी कॉलम में 2 सितंबर 2011 को हमने सोलार इंडस्ट्रीज की चर्चा की थी। तब बीएसई में उसका पिछला बंद भाव था 753 रुपए। कल वो बीएसई में बंद हुआ है 823.65 रुपए पर। सवा दो महीने में 9.38 फीसदी की बढ़त। इसे सालाना दर में बदले तो 50 फीसदी से ऊपर निकलती है। लेकिन ऐसे तमाम उदाहरणों से उतनी खुशी नहीं होगी, जितनी कि कई शेयरों में लगी तगड़ी चपत से। जैसे, सीएनआई से लिए जा रहे निवेश शिक्षण के हमारे दूसरे कॉलम ‘चक्री चमत्कार’ में सितंबर 2010 के अंत में सूर्यचक्र पावर को बड़े जोरशोर से उठाया गया। कहा गया कि इसे रिटायरमेंट के लिए सुरक्षित मानकर ले लें। तब इसका भाव 20-22 रुपए था। अभी 5.86 रुपए है। 72 फीसदी से ज्यादा का नुकसान। खरीद मूल्य के स्तर तक पहुंचने के लिए इसे करीब 260 फीसदी बढ़ना होगा। क्या यह संभव है?

चक्री की तरफ से राठी बार्स को खरीदने की सिफारिश आई मई 2010 में। 21 मई 2010 को इसका भाव था 15.50 रुपए। अभी 7.55 रुपर पर है। 51 फीसदी से ज्यादा की गिरावट। वापस खरीद मूल्य पर पहुंचने के लिए इसे 105 फीसदी से ज्यादा बढ़ना पड़ेगा। शिवालिक बाइमेटल की सिफारिश अप्रैल 2010 के शुरू में आई थी। 6 अप्रैल को यह 28.45 रुपए था। अभी 13.99 रुपए पर है। 50.82 फीसदी का ऋणात्मक रिटर्न। इस घाटे को पाटने के लिए भी इसे यहां से कम से कम 103.36 फीसदी बढ़ना होगा।

पिछली दीवाली पर चक्री ने तीन शेयर बताए थे और इनमें कई गुना रिटर्न का दावा किया था। कहा था कि उनकी बात कट-पेस्ट करके रख ली जाए। त्रिवेणी ग्लास, जो 18.50 से 8 रुपए पर आ चुका है। 56.75 फीसदी का नुकसान, जिसे भरने के लिए शेयर को यहां से 131.25 फीसदी बढ़ना होगा। कैम्फर एंड एलायड प्रोडक्ट्स जो 220 रुपए से 141 रुपए पर आ चुका है। 35.90 फीसदी का नुकसान, जिसकी पूर्ति के लिए स्टॉक को यहां से 56 फीसदी से ज्यादा बढना होगा। क्विंटेग्रा सोल्यूशंस जो 17 रुपए से 2.90 रुपए पर आ चुका है। 82.94 फीसदी का नुकसान जिसे भरने के लिए शेयर को यहां से 486 फीसदी बढ़ना होगा। क्या इतनी बढ़त संभव है? अगर आपको लगता है हां, तो बने रहिए। नहीं तो किसी चमत्कार की उम्मीद में इनसे चिपके रहने का कोई तुक नहीं है। जो निवेश निठल्ला हो चुका है, उसे निकाल फेंकने में ही समझदारी है।

चूंकि निवेश की ये सारी सिफारिशें चक्री की थी, इसलिए उनसे हमने जानना चाहा कि ऐसा क्यों हो गया? उनका जवाब था, “आप सभी को समझना चाहिए कि अब तक 2011 का साल शेयर बाजार के लिए सबसे बुरा साल रहा है। इसलिए स्मॉल कैप कंपनियों के स्टॉक्स ने कभी भी अच्छी प्रगति नहीं दिखाई। इसमें चौंकने जैसी कोई बात नहीं है। अगर एचडीआईएल 500 रुपए से घटकर 90 रुपए पर आ सकता है, रिलायंस इंडस्ट्रीज 1200 से 800 रुपए पर आ सकता है तो तमाम स्टॉक्स का गिरना लाजिमी था।…

“कैम्फर को हमने शुरू में 132 पर खरीदने की सिफारिश की थी, वह गिरने के पहले 303 रुपए तक गया। ऐसा ही हाल पिछली दीवाली के दूसरे स्टॉक्स का भी रहा है। इसमें अचंभित होने जैसी कोई बात नहीं है। निवेशक स्मॉल कैप में इसलिए रिस्क लेते हैं क्योंकि वे ज्यादा औसत रिटर्न चाहते हैं। लेकिन बुरे सालों के दौरान होता यह है कि शेयरों के भाव जरूरत से ज्यादा ही गिर जाते हैं। ए ग्रुप के स्टॉक्स मल्टी बैगर नहीं बन सकते। इसलिए वे 50-60 फीसदी गिरकर संभल जाते हैं। दूसरी तरफ स्मॉल कैप बढ़ते हैं तो कई गुना बढ़ जाते हैं और गिरते हैं तो ए ग्रुप के शेयरों को पीछे छोड़ देते हैं। किसी भी शेयर में लक्ष्य मुद्रास्फीति, आर्थिक सुस्ती व डाउनग्रेड जैसे कारकों के आधार पर बदलते रहते हैं। इसलिए निवेशकों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।”

यकीनन चक्री जैसे अनुभवी शख्स की बातों पर गौर किया जाना चाहिए। लेकिन मैंने अभी तक जो सीखा-समझा है, उसके मुताबिक, “अगर कोई शेयर आपके खरीद मूल्य से 25 फीसदी नीचे चला जाए तो उससे फटाफट बेचकर निकल लेना चाहिए। इसे स्टॉप लॉस कहते हैं। अगर कोई शेयर खरीद मूल्य से 50 फीसदी तक बढ़ गया और अचानक गिरना शुरू करता है तो उसके वहां से 25 फीसदी गिरते ही बेचकर नमस्कार कर देना चाहिए। इसे स्टॉप प्रॉफिट कहते हैं।”

लेकिन कहावत है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे। हम सब एक सामान्य मनोविज्ञान में फंसे हैं। यहां देवदूत का स्वांग जरूर किया जा सकता है, बना नहीं जा सकता। के एस ऑयल मैंने 30 रुपए पर लिया था। 8.50 रुपए तक गिर चुका है। 71.66 फीसदी का घाटा जिसे भरने के लिए इस स्टॉक को 252.94 फीसदी बढ़ना पड़ेगा। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी किसी चमत्कार के इंतजार में बैठा हूं क्योंकि मानने को दिल भी नहीं करता कि अपने फैसले गलत भी हो सकते हैं। लेकिन यह निपट भावना है, बुद्धिमानी नहीं। अंत में शुरुआती लाइनों के समर्थन में जगजीत सिंह की अमर आवाज़ में पेश है यह गजल….

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