नेस्ले का घोंसला उजड़ता क्यों नहीं!

यूं तो आज के समय में कंपनियों के साथ राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद को जोड़ने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि देशी-विदेशी हर कंपनी का मकसद अंधाधुंध मुनाफा कमाना है। अन्यथा, वॉलमार्ट या केयरफोर से सबसे ज्यादा चोट खा सकने वाले बिग बाज़ार या रिलायंस फ्रेश जैसे देशी रिटेलर ही उनका स्वागत पलक पांवड़े बिछाकर नहीं कर रहे होते। किशोर बियानी जैसे लोग तो इस चक्कर में हैं कि अपने उद्यम की इक्विटी इन विदेशियों को बेचकर कैसे हज़ारों करोड़ की दौलत खड़ी कर लें।

लेकिन नेस्ले जैसी बिना किसी अनोखे हुनर की कंपनी भारत में अगर ठसक के साथ सौ साल पूरे कर लेती है तो भारत की उद्यमशीलता पर सवाल जरूर खड़ा हो जाता है कि क्या हम में इतनी कुव्वत नहीं है कि इतने लाभ वाले धंधे से मूलतः स्विटजरलैंड की इस कंपनी को बाहर निकाल सके। आखिर यह कंपनी तो हमारे ही स्वाद और स्वास्थ्य के दम पर अरबों बना रही है। वैसे, नेस्ले इस समय दुनिया के 86 देशों में मौजूद है और इसमें 2.80 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं।

भारत में उसके कदम 1912 में पड़े। तब उसका नाम था – नेस्ले एंग्लो-स्विस कंडेंस्ड मिल्क कंपनी (एक्सपोर्ट) लिमिटेड। वह बाहर से माल आयात करते भारत में बेचती थी। 1947 में अंग्रेज़ों के जाने के बाद भी वह भारत में टिकी रही। 1961 में उसने मोगा (पंजाब) में अपनी पहली फैक्टरी डाली। सरकार का पूरा सहयोग उसे मिला और कंपनी का कहना है कि उसने सरकार (पंडित नेहरू) के ही प्रोत्साहन पर दूध की अर्थव्यवस्था विकसित की। ध्यान दें कि आज़ादी के आंदोलन से प्रेरित होकर 1946 में ही अमूल ने देश की दूध की अर्थव्यवस्था विकसित करने का काम शुरू कर दिया था।

खैर, देशी, विदेशी और दलाली का यह मिश्रण ही हमारे आज़ादी का आधार था तो नेस्ले जैसी कंपनियों को बढ़ना ही था। इस समय नेस्ले भारत में किटकैट, बार-वन, नेसकैफे, नेसटी, मिल्कमेड व मैग्गी से लेकर नेस्ले मिल्क, नेस्ले स्लिम मिल्क, नेस्ले दही और नेस्ले जीरा रायता बनाकर बेचती है। इनमें ऐसी कोई उन्नत तकनीक नहीं है, जिसके लिए विदेशी कंपनी को भारत से मुनाफा बटोरते रहने की छूट देते रहा जाए। अमूल उसे हर उत्पाद में पछाड़ चुका है। लेकिन पूंजी निवेश भी तो चाहिए। नेस्ले इंडिया के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक एंटोनियो हेलियो वास्ज़िक ने इसी हफ्ते मंगलवार, 14 फरवरी को कंपनी के सालाना नतीजों की घोषणा करते हुए कहा, “क्या कमाल की उपलब्धि है कि जब भारत में हम अपना 100वां साल मना रहे हैं तब कंपनी का ईपीएस 100 रुपए पर पहुंच गया है। हमने यहां मैन्यूफैक्चरिंग व डिस्ट्रीब्यूशन में 2000 करोड़ रुपए का जो निवेश किया है, उसका परिचालन बस शुरू ही कर रहे हैं।”

कंपनी का साल कैलेंडर वर्ष के हिसाब से चलता है। मंगलवार को घोषित नतीजों के अनुसार दिसंबर में खत्म वर्ष 2011 में नेस्ले इंडिया की बिक्री 19.76 फीसदी बढ़कर 7490.82 करोड़ रुपए पर पहुंच गई, जबकि शुद्ध लाभ 17.49 फीसदी बढ़कर 961.55 करोड़ रुपए हो गया। दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी 96.42 करोड़ रुपए की इक्विटी पर कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 99.73 रुपए निकलता है। यही वे लगभग 100 रुपए हैं जिन्हें भारत में अपने 100 साल पूरा करने के जश्न से कंपनी ने जोड़ दिया है।

नेस्ले का शेयर ए ग्रुप और बीएसई-100 सूचकांक में शामिल है। लेकिन यह फ्यूचर्स एंड ऑप्शन (एफ एंड ओ) सेगमेंट में शामिल नहीं है। कल इसका शेयर बीएसई (कोड – 500790) में 4372.55 रुपए और एनएसई (कोड – NESTLEIND) में 4387.80 रुपए पर बंद हुआ है। अजीब संयोग है कि ठीक आज ही के दिन 17 फरवरी 2011 को नेस्ले का शेयर 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर 3371 रुपए पर था। उसके बाद 8 नवंबर 2011 को 4549 के शिखर पर जा पहुंचा। फिलहाल उसी के आसपास चल रहा है।

साल भर में नेस्ले का शेयर करीब 30 फीसदी का रिटर्न दे चुका है। लेकिन मौजूदा स्तर पर उसमें निवेश का कोई तुक या योग नहीं बनता। इस शेयर की बुक वैल्यू 132.13 रुपए है जिसके 33.09 गुने पर वह ट्रेड हो रहा है। यही नहीं, मौजूदा बाजार भाव पर उसका पी/ई अनुपात 43.84 का है, जबकि सेंसेक्स इस समय 18.50 के पी/ई पर चल रहा है। कमाल है, हमारा बाजार भी विदेशियों को फालतू में कितना भाव देता है!  वैसे, यह शेयर नवंबर 2010 में 64.44 तक के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है।

कंपनी ने इधर अपना परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) सुधारा है। दिसंबर तिमाही में यह 1.26 फीसदी ज्यादा होकर 20.05 फीसदी पर आ गया। लेकिन शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) 12.14 फीसदी से घटकर 11.76 पर आ गया है। आगे इसमें और कमी की आशंका है। उसकी पंतनगर (उत्तराखंड) की फैक्टरी को 100 फीसदी कर-मुक्ति की पांच साल की मीयाद अब पूरी हो गई है। अब कंपनी को अपने 30 फीसदी लाभ पर ही कर-छूट मिलेगी। इसके चलते कंपनी का कर का बोझ आगे निश्चित रूप से बढ़ना है।
कंपनी की इक्विटी में विदेशी प्रवर्तकों – नेस्ले एसए और मैग्गी एंटरप्राइसेज की हिस्सेदारी 62.76 फीसदी है। एफआईआई ने इसके 10.91 फीसदी और डीआईआई ने 8 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं। कंपनी के शेयरधारकों की कुल संख्या 62,928 है। इसमें से एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशकों की संख्या 59,933 यानी 95.24 फीसदी है, जिनके पास कंपनी के 10.23 फीसदी शेयर हैं। नेस्ले बराबर लाभांश देनेवाली कंपनी है। साल 2011 के लिए उसने दस रुपए के शेयर पर कुल 48.50 रुपए का लाभांश दिया है जो 485 फीसदी बनता है। लेकिन शेयर के बाजार भाव को देखते हुए उसकी लाभांश यील्ड मात्र 1.11 फीसदी है।

1 Comment

  1. Good and very good

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