ऑटोमोटिव ऐक्सल को ये कैसी सजा!

कोई कंपनी जब टी ग्रुप में डाल दी जाती है तो उसमें उसी दिन डिलीवरी के कारण लिक्विडिटी एकदम सूख जाती है। हो सकता है कि वहां पड़े-पड़े कोई शेयर किसी दिन एकदम इल्लिक्विड हो जाए, मतलब उसमें कोई खरीद-फरोख्त हो ही नहीं। बाजार नियामक सेबी और हमारे एक्सचेंज इसे लिस्टेड कंपनियों को सजा देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसा बी ग्रुप की किसी अच्छी-खासी कंपनी के साथ होने लगे तो आप क्या कहेंगे?

जी, हां। इन दिनों कल्याणी समूह और अमेरिकी कंपनी मेरिटोर इंक की संयुक्त उद्यम कंपनी ऑटोमोटिव ऐक्सल्स के साथ यही हो रहा है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बीएसई में 19 सितंबर से लेकर अब तक के 22 कारोबारी सत्रों में से चार दिन इसमें ट्रेडिंग का आंकड़ा दहाई में भी नहीं गया है। कल, 18 अक्टूबर को इसके चार शेयर खरीदे-बेचे गए। एक दिन पहले 17 अक्टूबर को यह संख्या दो शेयरों की थी। पिछले बुधवार, 12 अक्टूबर को तो इसका केवल एक शेयर खरीदा-बेचा गया।

एनएसई में भी हाल कोई बेहतर नहीं है। 12 अक्टूबर को वहां ऑटोमोटिव ऐक्सल्स के किसी शेयर में ट्रेडिंग नहीं हुई। 17 अक्टूबर को 46 शेयरों में ट्रेडिंग हुई, जिसमें से 21 डिलीवरी के लिए थे। कल 18 अक्टूबर को 65 शेयर ट्रेड हुए जिसमें से 40 डिलीवरी के लिए थे। इस शेयर में इस महीने वहां सबसे कम कारोबार 4 अक्टूबर को 19 शेयरों का हुआ था जिसमें से 16 डिलीवरी के लिए थे।

ऐसा भी नहीं कि इसका शेयर उड़ीसा मिनरल्स डेवलपमेंट कंपनी की तरह 45,000 रुपए के आसपास हो तो एक-दो शेयर ही खरीदना काफी हो जाता हो। इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 505010) में 397 रुपए और एनएसई (कोड – AUTOAXLES) में 388 रुपए पर बंद हुआ है। यह पिछले साल 8 नवंबर 2010 को ऊपर में 549.90 रुपए तक जा चुका है, जबकि 52 हफ्ते का इसका न्यूनतम स्तर 330.55 रुपए का है जो इसने इस साल 31 जनवरी 2011 को हासिल किया था।

मूल्यांकन के लिहाज से देखें तो जून 2011 की तिमाही के नतीजों को मिलाकर इसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 36.65 रुपए है और इस तरह इसका शेयर अभी 10.83 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। साल भर पहले यह 20.69 के पी/ई पर ट्रेड हो रहा था। कंपनी का धंधा दुरुस्त चल रहा है। इस साल जून तिमाही में उसकी बिक्री 39.63 फीसदी बढ़कर 273.91 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 21.92 फीसदी बढ़कर 17.74 करोड़ रुपए हो गया। इसका लेखा वर्ष अक्टूबर से सितंबर तक का है। पिछले लेखा वर्ष 2009-10 में इसने 669.73 करोड़ रुपए की बिक्री पर 44.07 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। पिछली पांच तिमाहियों में कंपनी की आय में औसत 81 फीसदी और परिचालन लाभ में 79 फीसदी की वृद्धि हुई है।

यह 1981 में बनी कंपनी है। देश में रियर ड्राइव ऐक्सल असेम्बली की सबसे बड़ी निर्माता है। मैसूर (कर्नाटक) में इसका अत्याधुनिक संयंत्र है। यह अशोक लेलैंड, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा और वोल्वो जैसी कंपनियों की ओईएम (ओरिजन इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर) है। सैनिक वाहनों के लिए भी ऐक्सल असेम्बली बनाती है। अभी उसकी आय का केवल 6 फीसदी निर्यात से आता है। लेकिन विदेशी ग्राहकों में मर्सेडीज बेंज जैसी कंपनियां शामिल हैं। कंपनी ग्राहकों की बदलती जरूरतों के अनुरूप कुछ नए उत्पाद लाने में जुटी है। अगले एक साल में वो टू-स्पीड ऐक्सल, प्लैनेटरी हब रिडक्शन ऐक्सल, हाई-एन्ड कोच ऐक्सल और ऑफ-हाईवे ऐक्सल बनाकर बाजार में उतारनेवाली है। इससे उसका ग्राहक आधार और व्यापक हो जाएगा।

लेकिन क्या फायदा? कंपनी लाख अच्छी हो, अगर उसके शेयर समय पर खरीदे-बेचे ही न जा सकें तो हम-आप उसे लेकर अचार डालेंगे क्या! बात बहुत सीधी-सी है कि कोई भी निवेशक किसी कंपनी का भला करने के लिए नहीं, बल्कि फायदा कमाने के लिए अपना धन लगाता है। जहां से घुसकर वह निकल ही न पाए, उस चक्रव्यूह में फंसने का फायदा ही क्या? वैसे, सेबी और हमारे स्टॉक एक्सचेंजों को किसी स्टॉक में बिना किसी बात के इस तरह तरलता सूख जाने का इलाज ढूढना ही पड़ेगा।

एक मुश्किल ऑटोमोटिव ऐक्सेल्स के साथ यह है कि वह स्माल कैप कंपनी है। उसकी कुल इक्विटी 15.11 करोड़ रुपए है। इसका 71.04 फीसदी हिस्सा तो प्रवर्तकों के पास है। बाकी 28.94 फीसदी शेयर ही पब्लिक के पास हैं। इसमें से एफआईआई के पास 0.17 फीसदी और डीआईआई के पास 9.75 फीसदी शेयर हैं। बाकी 19.04 फीसदी शेयर ही थोड़ा मुक्त या फ्लोटिंग दिखते हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या मात्र 9855 है। इसमें से 9460 छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के 6.67 फीसदी शेयर हैं। दस शेयरधारकों का निवेश एक लाख रुपए से ज्यादा का है और उनके पास कंपनी के 1.71 फीसदी शेयर हैं। कंपनी में एक फीसदी से ज्यादा इक्विटी रखनेवाले तीन निवेशक हैं जिनके पास उसके 15.73 फीसदी शेयर हैं। इनमें रिलायंस कैपिटल ट्रस्टी (9.23 फीसदी), बजाज एलियांज लाइफ इंश्योरेंस (3.19 फीसदी) और एम3 इनवेस्टमेंट (3.31 फीसदी) शामिल हैं। अमेरिका जैसे विकसित बाजारों के हेज फंड ऐसे ही ‘मृत’ स्टॉक्स में लंबे समय का निवेश करते हैं। लेकिन अपने यहां बाजार की जो हालत है, उसमें शायद ऐसे स्टॉक्स में फंसने का कोई मतलब नहीं है।

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