लेते हैं वैबको इंडिया का छोटा-सा ब्रेक

भयंकर आंधी खर-पतवार से लेकर बड़े-बड़े पेड़ों तक को उड़ा ले जाती है। लेकिन वह उस सरपत का कुछ नहीं कर पाती जो नदी के किनारे गहरे धंसे मस्त भाव से लहराते रहते हैं। शेयर बाजार की बात करें तो जब दुनिया में हर तरफ संकट दिख रहा हो, तब उन कंपनियों का रुख करना चाहिए जो घरेलू खपत पर फलती-फूलती हों। जब सारे स्टॉक्स डूब रहे हों, तब उन स्टॉक्स का रुख करना चाहिए जो हताशा के बीच भी लहरा रहे हों। वैबको इंडिया एक ऐसी ही कंपनी है। कल जब बाजार में कोहराम मचा था, सेंसेक्स 4.13 फीसदी टूट गया, तब भी इसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 533023) में 1.10 फीसदी बढ़कर 1321.45 रुपए और एनएसई (कोड – WABCO) में 0.24 फीसदी बढ़कर 1309.05 रुपए पर बंद हुआ है। कमाल है बीएसई व एनएसई में प्रति शेयर 12.40 रुपए का अंतर!!! खैर, अपने यहां ‘प्राइस डिस्कवरी’ ऐसी ही चलती है।

इस शेयर ने इसी महीने 6 सितंबर को 1334 रुपए पर 52 हफ्ते का शिखर चूमा है। वो भी इसी साल 10 फरवरी को 863 रुपए की तलहटी पकड़ने के बाद। मिड कैप कंपनी है। इक्विटी पूंजी तो 9.48 करोड़ रुपए ही है। लेकिन बाजार पूंजीकरण 2484 करोड़ रुपए है। वैसे, असल औकात की बात करें तो वैबको बहुत बड़ी 140 साल पुरानी बहुराष्ट्रीय कंपनी है। इसका मुख्यालय ब्रसेल्स (बेल्जियम) में है। 31 देशों में इसके 9900 कर्मचारी हैं। बस, ट्रक व ट्रैलर के एयर ब्रेक सिस्टम बनाती है। एमरजेंसी ब्रेक सिस्टम बनाने में सिद्धहस्त है। वाहनों की सुरक्षा से जुड़े पारंपरिक से लेकर एडवांस सिस्टम बनाती है। इनमें एयर क्रंपेसर, एक्चुएशन सिस्टम, कंट्रोल वॉल्व, एंटी-लॉक ब्रेक सिस्टम व इलेक्ट्रॉनिक ब्रेक सिस्टम शामिल हैं।

भारत में इसकी शुरुआत टीवीसी समूह की कंपनी सुंदरम क्लेटन के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में 1962 में हुई। नाम इसका वैबको टीवीसी रहा। लेकिन 2009 आते वैबको ने इसमें बहुमत हिस्सेदारी हासिल कर ली। इस समय बैवको होल्डिंग्स ने अपनी इकाई क्लेटन डेवांड्रे के जरिए कंपनी की 75 फीसदी इक्विटी ले रखी है। बाकी 2.04 फीसदी इक्विटी एफआईआई और 10.46 फीसदी डीआईआई के पास है। शेष आम निवेशकों के पास इसके 12.50 फीसदी शेयर हैं। कुल शेयरधारक 16,282 है जिनमें से 15,834 छोटे निवेशक हैं। इसके चार बड़े शेयरधारक रिलायंस कैपिटल (4.01 फीसदी), सुंदरम म्यूचुअल फंड (1.59 फीसदी), एचडीएफसी ट्रस्टी कंपनी (1.06 फीसदी) और वसाच एमर्जिंग मार्केट स्मॉल कैप फंड (1.02 फीसदी) हैं।

देश में फिलहाल इसकी तीन उत्पादन इकाइयां – दो चेन्नई में और एक जमशेदपुर में हैं। जल्दी ही चार हो जाएंगी। दो दिन पहले ही कंपनी के सीईओ जैक एसक्युलियर ने घोषणा की कि इस साल 60 करोड़ रुपए का पूंजी खर्च किया जा रहा है। इसमें से 40 करोड़ चेन्नई में महिंद्रा वर्ल्ड सिटी एसईजेड की इकाई के क्षमता विस्तार पर लगाए जाएंगे, जबकि 10 करोड़ रुपए लखनऊ में नई इकाई लगाने पर खर्च होंगे। बाकी 10 करोड़ अन्य खर्चों के लिए हैं। लखनऊ इकाई के लिए जमीन वगैरह ली जा चुकी है। मूलतः यह एक असेम्बली प्लांट होगा जहां से टाटा मोटर्स व अशोक लेलैंड को माल सप्लाई किया जाएगा। कंपनी की योजना भारत में लिफ्ट-एक्सिल कंट्रोल सिस्टम भी बनाने की है।

बता दें कि एयर ब्रेक सिस्टम में देश में लगभग उसका एकाधिकार है। ऑटो कंपनियों में मूल उपकरण सप्लाई करने के बाजार में उसकी 85 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि ऑफ्टर सेल्स बाजार का तकरीबन 75 फीसदी हिस्सा उसके कब्जे में है। कंपनी भारत में बने उत्पाद दक्षिण एशिया, उत्तरी अमेरिका व मध्य-पूर्व के देशों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, मलयेशिया, ब्रिटेन, सिंगापुर व वेनेजुअला को निर्यात भी करती है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 899 करोड़ के टर्नओवर में 117 करोड़ रुपए निर्यात से आए थे।

कंपनी भारत में एक तरह के संक्रमण से गुजर रही है। पिछले महीने 2 अगस्त से उनका नाम वैबको टीवीएस से बदलकर वैबको इंडिया हो गया। टीवीसी का ब्रांड नाम वो जून 2012 तक इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन इसके हटने के कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वैबको अपने-आप में काफी बड़ा नाम है। देश में वह पूरी तरह जम चुकी है और फिलहाल उसके करीब 7000 आउटलेट हैं।

चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जून की पहली तिमाही में उसकी बिक्री 20.21 फीसदी बढ़कर 236.41 करोड़ और शुद्ध लाभ 22.01 फीसदी बढ़कर 34.15 करोड़ रुपए है। उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 70.46 रुपए है और उसका शेयर 18.75 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इससे पहले वह दिसंबर 2010 में 32.57 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो चुका है। लेकिन तब उसका भाव अभी से कम 1175.85 रुपए ही था।

यूं तो कंपनी के 75 फीसदी शेयर प्रवर्तक के पास हैं। इसलिए लाभांश का तीन-चौथाई हिस्सा तो वापस प्रवर्तक के पास ही पहुंच जाता है। लेकिन लाभांश घोषित करने की दरियादिली कंपनी के मजबूत आत्मविश्वास को दिखाती है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 के लिए उसने पांच रुपए के शेयर पर पांच रुपए यानी 100 फीसदी लाभांश घोषित किया है। इस तरह अपनी 9.48 करोड़ रुपए की इक्विटी के बराबर रकम तो उसने इस साल शेयरधारकों में ही बांट दी है। सारी कहानी का निचोड़ यह है कि वैबको इंडिया में लंबे समय की सोच कर आराम से निवेश किया जा सकता है। यह बड़ा लाभकारी साबित होगा।

1 Comment

  1. I agree with you, i have also hold this stock from last 5 months.

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