वस्त्राय पुत्राय मातरो वयन्ति

यह विनोबा भावे द्वारा ऋगवेद के अध्ययन के बाद लिखे गए ऋगवेद सार: का एक मंत्र है। इसका शाब्दिक अर्थ है – लड़के के लिए माताएं वस्त्र बुन रही हैं। पूरी व्याख्या विनोबा जी ने कुछ इस तरह लिखी है।

प्राचीन काल में पुरुष खेती का काम करता था और स्त्री घर में बुनती थी। आज पुरुष बुनते हैं और स्त्रियां कांडी भरने का काम करती हैं। यानी, स्त्रियों का स्वतंत्र धंधा चला गया। इस तरह एक-एक धंधा छीना जाएगा तो स्त्रियां स्वाधीन कैसे रहेंगी? वे यह भी नहीं जानती हैं कि पति मर जाए तो बच्चे का पालन कैसे करें! बहुत दयनीय अवस्था हो जाती है उनकी। इसलिए स्त्रियों के लिए धंधे सुरक्षित होने चाहिए और वे उनके हाथ में होने चाहिए। उसके बिना समाज नहीं टिकेगा।

जैसे शहर के लोग देहात के धंधों को हथिया रहे हैं, वैसे ही पुरुषों ने स्त्रियों के धंधे हथिया लिए हैं। प्राचीन काल में स्त्रियां बुनती थीं। वेदों में जहां-जहां बुनाई का उल्लेख आया है, वहां-वहां बुननेवाली (वयन्ति) शब्द आया है। लेकिन आगे चलकर बुनाई पुरुषों ने शुरू कर दी और स्त्रियों को कांडी भरने का काम दे दिया। यानी, मुख्य काम पुरुषों के हाथ में चला गया और गौण काम स्त्रियों के हाथ में रह गया। कांडी भरने के लिए अधिक स्त्रियों की जरूरत होती है, इसलिए बुनकरों में एक से अधिक पत्नी रखने की प्रथा चल पड़ी। इस तरह जो काम स्त्रियों के लिए रखा गया था, वह छीन लिया गया ताकि वे पुरुषों पर निर्भर हो जाएं।

मेरी राय है कि जो काम स्त्रियों के लिए शक्य हैं, वे उन्हीं के लिए रहने चाहिए। इससे उनकी स्वतंत्र प्रतिष्ठा रहेगी। अन्यथा सारे काम पुरुषों के हाथ में चले जाएंगे और स्त्रियों को सदा सर्वदा के लिए पराधीन, पुरुषाधीन रहना होगा। स्त्रियों का पराधीन रहना उचित है, ऐसा अगर पुरुष मानते हैं तो मैं पुरुषों से कहूंगा कि आप एक गारंटी दें कि सारे बच्चों के बड़े होने तक हम मरेंगे नहीं। लेकिन आप लोग चाहे जब मर जाते हैं और फिर सारी जिम्मेवारी स्त्रियों पर आ जाती है।

3 Comments

  1. विनोबा जी की सूक्ष्म दृष्टि प्रशंसनीय है। इसे व्यापक कर हर पेशे/हर कार्य पर लागू किया जा सकता है।

  2. this is very nice . thank’s

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