दाग-बेदाग हुई एलआईसी हाउसिंग

दाग हमेशा तो नहीं, लेकिन कभी-कभी अच्छे होते हैं। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के आला अधिकारी पर रिश्वतखोरी का दाग नहीं लगता तो उसके शेयर 36.77 फीसदी नहीं गिरते। 23 नवंबर को इस कांड के उजागर होने से पहले 23 नवंबर को यह शेयर 261.63 रुपए पर था और 10 दिसंबर को 165.41 तक गिर गया। हालांकि तब यह शेयर दस रुपए का अंकित मूल्य का था और उसका वास्तविक भाव 1308.15 रुपए से गिरकर 827.05 रुपए तक चला गया। चूंकि इस दौरान दस रुपए के शेयर को दो रुपए अंकित मूल्य के पांच शेयरों में विभक्त कर दिया गया है। इसलिए हम सही तुलना के लिए उसके भाव को पांच से भाग देकर गिन रहे हैं। संयोग से आज 31 दिसंबर 2010 ही इस स्टॉक स्प्लिट की रिकॉर्ड तिथि भी है।

10 दिसंबर को 165.41 रुपए तक गिर जाने के बाद यह शेयर बराबर बढ़ रहा है और कल बीएसई (कोड – 500293) में इसका बंद भाव 193.90 रुपए और एनएसई (कोड – LICHSGFIN) में 194.25 रुपए रहा है। कंपनी पर लगा मामूली-सा दाग अब एकदम धूमिल हो चुका है और निवेशकों व ट्रेडरों के दिमाग में भी इसकी बिगड़ी छवि दुरुस्त हो चुकी है। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि कल बीएसई में इसमें पिछले दो हफ्ते के औसत 5.64 लाख से लगभग चार गुना 23.19 लाख शेयरों का कारोबार हुआ है जिसमें से 18.70 फीसदी डिलीवरी के लिए थे, जबकि एनएसई में 94.32 लाख शेयरों के सौदे हुए जिसमें से 23.57 फीसदी डिलीवरी के लिए थे।

हमारा मानना है कि अब एलआईसी हाउसिंग को पकड़ने का सही मौका आ गया है। यह देश में एचडीएफसी के बाद दूसरी सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी है। ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 17.13 रुपए है और उसका शेयर 11.32 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि एचडीएफसी का पी/ई अनुपात 34.35 चल रहा है। हालांकि जीआईसी हाउसिंग का पी/ई इससे कम 8.65 और दीवान हाउसिंग का इससे थोडा ज्यादा 12.56 गुने पर है। लेकिन लोन बुक के मामले में एलआईसी हाउसिंग दीवान हाउसिंग और जीआईसी हाउसिंग से बहुत आगे है।

एलआईसी हाउसिंग की लोन बुक (दिए गए कुल ऋण) 1 अप्रैल 2008 से 30 सितंबर 2010 के दौरान 21,936 करोड़ रुपए से बढ़कर 43,385 करोड़ रुपए हो चुकी है। यानी, ढाई साल में 98 फीसदी की वृद्धि। 30 सितंबर 2010 तक बिल्डरों व डेवलपर्स को दिए गए उसके कुल ऋण करीब 4800 करोड़ के थे, जबकि साल भर पहले इसकी मात्रा 2600 करोड़ रुपए थी। इस तरह कंपनी का कॉरपोरेट लोन पोर्टफोलियो महज 11 फीसदी है, जबकि बाकी 89 फीसदी हिस्सा रिटेल लोन का है। रिश्वतखोरी में फंसे ऋण की मात्रा महज 389 करोड़ रुपए है। सीबीआई के अलावा एलआईसी की तीन सदस्यीय समिति की अपनी जांच रिपोर्ट जल्दी ही लानेवाली है और तब सारा दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।

कुल मिलाकर एलआईसी हाउसिंग का ऋण पोर्टफोलियो एकदम चौकस है। वह लगातार नौ तिमाहियों से अपना एनपीए (समय पर अदायगी न किए जानेवाले ऋण) का अनुपात 1 फीसदी से नीचे रखने में कामयाब रही है। 30 सितंबर 2010 की तिमाही में तो उसका शुद्ध एनपीए 0.21 फीसदी ही था। यह भी नोट करने की बात है कि कॉरपोरेट ऋणों में उसका सकल एनपीए मात्र 0.08 फीसदी है, जबकि रिटेल ऋणों में 0.84 फीसदी है।

इसलिए अब एलआईसी हाउसिंग पर लगे दाग को लेकर ज्यादा फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं है। यह किसी व्यक्ति की साधारण रिश्वतखोरी का मामला था। वी के शर्मा कंपनी के सीईओ की बागडोर संभाल चुके हैं। आगे सब अच्छा ही अच्छा होना है। एलआईसी हाउसिंग का शेयर 193 रुपए के वर्तमान स्तर से जल्दी ही बढ़कर 220 रुपए तक जा सकता है और आगे तो इसमें 300 रुपए तक जाने की पूरी गुंजाइश है।

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