अपनी इच्छाओं को आरोपित करने के बजाय हमें उन्हें यथार्थ के हिसाब से सजाना चाहिए। यथार्थ सतह से उभरा अंकुर ही नहीं, सतह के नीचे पड़ा बीज भी होता है। इसी त्रिकाल दृष्टि से पूरी होती हैं इच्छाएं।और भीऔर भी