खामियां हैं तभी तो पलते हैं ऑपरेटर

मैंने कल लिखा था कि वे निफ्टी में 5500 का स्तर तोड़ने की कोशिश करेंगे और 5550 के ऊपर पहुंच जाने पर कवरिंग शुरू कर देंगे। सारा कुछ ऐसा ही हो रहा है। मैंने अब कई फंड मैनेजरों को कहते हुए सुना है कि भारत को अंडर-परफॉर्म नहीं करना चाहिए था। मैं अगर वित्त मंत्री होता तो उनको दिखा देता कि भारत कैसे अपने बाजार पर उनके दबदबे को ठुकरा सकता है।

मेरे सूत्रों का कहना है कि घरेलू संस्थाएं सोमवार से बडे पैमाने पर खरीद शुरू करेंगी क्योंकि स्टील अथॉरिटी (सेल) और ओएनजीसी के एफपीओ जल्दी ही लाए जाने हैं। ओएनजीसी पहले से डेरिवेटिव सौदों में 95 फीसदी का बैंड छू चुका है और अब उसका मूल्य उठाना बहुत आसान हो गया है। बड़े और रिटेल निवेशक अब ओएनजीसी में लांग हो सकते हैं यानी भाव बढ़ने की उम्मीद के साथ इसे खरीद सकते हैं।

शॉर्ट सेलर अब भी बाजार में अफवाहें फैलाने से बाज नहीं आ रहे। ताजा अफवाह यह है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कॉरपोरेट क्षेत्र के कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। हम पहले एक बिजनेस चैनल को रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के कंसेंट ऑर्डर की अफवाह फैलाते देख चुके हैं जिसने आरआईएल के शेयर को चोट पहुंचाने के साथ ही निफ्टी को भी 300 अंकों का धक्का लगा दिया था। कहां है मीडिया की आचार संहिता या कोड ऑफ कंडक्ट?

अब तो निवेशकों का रवैया यही बन चुका है कि या तो जो हो रहा है, उसे झेलते रहो या उसकी तरफ से आंखें मूंद लो। एक्सचेंजों ने 1900 कंपनियों को इल्लिक्विड घोषित कर उनके बारे में ब्रोकरों व निवेशकों को आगाह किया है। नियम है कि आप किसी भी स्टॉक के कुल वोल्यूम के 10 फीसदी से ज्यादा शेयर नहीं खरीद सकते। सभी ब्रोकरों के रिस्क मैनेजमेट सिस्टम (आरएमएस) ने लाखों निवेशकों के ट्रेड रोक दिए हैं। इसे देखते हुए मुझे इल्लिक्विड कंपनियों की संख्या के बढ़ने पर कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है। छह महीने पहले यह संख्या 1400 थी और अब बढ़कर 1900 हो गई है। अच्छी बात है। किसी दिन यह संख्या 3000 पर पहुंच जाएगी और तब केवल 1000 कंपनियां बचेंगी जिसमें कोई निवेश कर सकता है। बहुत अच्छे जा रहे हो प्यारे!

यही वजह है कि हमें वोल्यूम पैदा करने के लिए एसडी, केपी, आरजे, एमएम, एनके, बार्टर और ऐसे तमाम ऑपरेटरों की जरूरत पड़ती है क्योंकि वोल्यूम बढ़ने पर ही निवेशक खरीद कर सकते हैं। वोल्यूम बढ़ाने के लिए आपको इन लोगों की जरूरत है क्योंकि इनके पास देश भर में फैला 50 ब्रोकरों और 100 खातों जैसा तंत्र होता है। इन धंधे में ब्रोकर भी मस्त रहते हैं क्योंकि उनको अपने हिस्से का धंधा मिल जाता है। इसमे रिटेल निवेशक का क्या हालत होती है? वे पूरी तरह खो जाते हैं। किसी रिटेल निवेशक से पूछिए कि क्या वह ग्लैक्सो के 500 शेयर खरीदेगा, वह पलटकर पूछेगा कि इसमें वोल्यूम कहां है? मेरे ब्रोकर सेबी और एक्सचेंज की बंदिशों के चलते मुझे ग्लैक्सो खरीदने नहीं देते।

हमारे यहां एफआईआई, एचएनआई, ऑपरेटरों या बड़े बिचौलियों के लिए बाजार है। लेकिन रिटेल निवेशकों के लिए वस्तुस्थिति यह है कि वे ए ग्रुप के शेयर ही खरीद पाते हैं जो पहले से काफी महंगे हो चुके हैं और इसके बाद वे बाजार की उथल-पुथल के बीच फंस जाते हैं। बी ग्रुप के अच्छे स्टॉक्स तक उनकी कोई पहुंच नहीं बन पाती। मसलन, कोई क्रिसिल के शेयर खरीदना चाहे जो देश कीसबसे अच्छी कंपनियों में शामिल है तो वह ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि इसमें वोल्यूम नहीं है। अगर मैं इसके 10,000 शेयर भी खरीदता हूं तो यह मात्रा वोल्यूम के 80 फीसदी के बराबर हो जाती है। फिर ऐसी सूरत में मैं करूं तो क्या करूं?

आप मुझसे ज्यादा बुद्धिमान और समझदार हैं। इसलिए मुझे आपको यह सारा कुछ तफ्सील से बताने की जरूरत नहीं। आपके पास जो कुछ भी है, उसे होल्ड करके रखें क्योंकि मैं जानता हूं कि आप तब तक और ज्यादा निवेश नहीं कर सकते जब तक निफ्टी 6300 के पार नहीं चला जाता।

जब आप अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं तो दूसरे भी आपके बारे में अच्छा महसूस करने लगते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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