हंसी-ठठ्ठा नहीं है इस कदर टूट जाना

अंदेशा था डाउ जोंस के 200 अंक और निफ्टी के 100 अंक गिर जाने का। लेकिन लगता है कि जैसे अपने यहां भाई लोग भरे बैठे थे। अमेरिका में फेडरल ओपन मार्केट कमिटी ने ऐसा कोई फैसला नहीं किया जिसकी अपेक्षा नहीं थी। सबको पता था और हमने भी लिखा था कि ऑपरेशन ट्विस्ट आना है और क्यूई-3 की गुंजाइश नहीं है। लेकिन मौका मिलते ही उस्तादों ने बाजार को धुन डाला। बीएसई सेंसेक्स का 704 अंक (4.13%) और एनएसई निफ्टी का 209.60 अंक (4.08%) का यूं ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था की खराब हालत से हड़क कर गिर जाना मायने रखता है। यह कोई हंसी-ठठ्ठा नहीं है और न ही स्वाभाविक है।

एशिया के दूसरे बाजार भी गिरे हैं लेकिन 2.1 से 2.9 फीसदी तक। केवल हांगकांग का हैंगसेंग सूचकांक 4.9 फीसदी गिरा है, लेकिन इसकी वजह है, उसके मूल देश चीन में सितंबर के दौरान मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों के सिकुड़ने का साफ आंकड़ा। पर भारत के साथ ऐसा क्यों? यहां तो ऐसी कोई आपदा आई नहीं है! लेकिन उठते सांड को चांपकर बैठा दिया गया। बाजार के मौजूदा बर्ताव को देखकर तो यही लगता है कि जैसे तेजड़ियों ने एकदम दम तोड़ दिया हो। दूसरी तरफ, रुपए का डॉलर के सापेक्ष 49 रुपए तक गिर जाना दिखाता है कि देश में विदेशी मुद्रा आती जा रही है।

रुपए में तीखी गिरावट से लगता है कि अब यह 50 रुपए के मनोवैज्ञानिक स्तर के बिलकुल नजदीक जाकर थमेगा जो यहां से महज 2 फीसदी दूर है। अनुमान है कि अगले एक साल में रुपया डॉलर के सापेक्ष फिर से 43 रुपए पर पहुंच जाएगा। केवल इसी बात से विदेशी पूंजी को 15 फीसदी का शानदार फायदा हो सकता है। इसे जानकर आसान कमाई के चक्कर में टहल रहे दुनिया में भटक रहे डॉलर मजे से भारत का रुख कर सकते हैं।

भारतीय बाजार पर एफआईआई के दबदबे से हम वाकिफ हैं। अब जिस तरह जीडीआर की धांधली पर सेबी के आदेश में पांच एफआईआई व उनके सब-एकाउंट का नाम आया है, उससे साफ है कि एफआईआई अपना नाम देकर प्रवर्तकों को कालाधन सफेद करने में मदद कर रहे थे। हम इस आदेश की अनकही बातों को बहुत साफ देख सकते हैं और तब हमें सारा खेल समझ में आ जाएगा। हालांकि सेबी का कदम काबिले-तारीफ है। लेकिन मुझे लगता है कि सेबी को इस मामले में काफी पहले सक्रिय हो जाना चाहिए था। खैर, हमारी नियामक संस्था स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह सबल और समर्थ है।

मीडिया में आई पी-नोट की शॉर्ट सेलिंग की खबर वाकई गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि पी-नोट को उधार देने पर साल 2008 से ही रोक लगी हुई है। असली समस्या तब आ सकती है कि सेबी पी-नोट बेचने वालों को कह दे कि वे अपने पोजिशन कवर करें। इधर एयरलाइन कंपनियों के स्टॉक में भारी आकर्षण देखने को मिल सकता है क्योंकि सिविल एविएशन में जल्दी ही विदेशी एयरलाइंस को निवेश की इजाजत दी जा सकती है। अभी इस क्षेत्र में 49 प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की इजाजत है और अनिवासी भारतीय 100 फीसदी तक इक्विटी लगा सकते हैं। लेकिन विदेशी एयरलाइंस पर बंदिश है। तनेजा एयरोस्पेस आज अगर 74.70 रुपए पर 52 हफ्ते का शिखर बना गया तो इसकी एकमात्र वजह नई एविएशन नीति का संभावित बदलाव है।

पिछले तीन दिनों में कुछ लांग पोजिशन बनी थीं। लेकिन आज निफ्टी 5000 का स्तर तोड़कर नीचे चला गया तो सभी में स्टॉप लॉस ट्रिगर हो गया। बाजार फिर से ओवरसोल्ड अवस्था में जा पहुंचा है। यहां तक कि निफ्टी फ्यूचर्स भी डिस्काउंट पर आ गया है। मंदड़िये हमेशा गिरने पर बेचते हैं और बढ़ने पर पोजिशन काटते हैं। लेकिन उन्हें भी इस गिरावट में ज्यादा मजा नहीं आ रहा है। तेजड़िये भी इतने निराश हैं कि जरा-सा बढ़ने पर बेचने लग रहे हैं। फिर भी मेरा मानना है कि मौजूदा स्तर पर शॉर्ट सेलिंग करना खतरनाक हो सकता है। अब कोई छोटी-सी सकारात्मक खबर भी बाजार के तेजी से पलटकर उठने का सबब बन सकती है।

हमें महीने के अंत में रोलओवर की पीड़ा तो सहनी ही पड़ेगी क्योंकि अपने यहां अभी तक कोई फिजिकल सेटलमेंट नहीं है और न ही सौदों के ऑटोमेटिव रोल हो जाने की व्यवस्था है। इस नीति से केवल बाजार को चलानेवाले ही मौज काट रहे हैं, रिटेल या खुदरा निवेशकों को कुछ नहीं मिलता। इसके विपरीत पुराने बदला सिस्टम में ऑटोमेटिक रोलओवर व फिजिकल सेटलमेंट दोनों ही था और सौदों को कैरी फॉरवर्ड करने के लिए बदला दरें तय करने के मामले में एक्सचेंज (बीएसई) ही सर्वेसर्वा था।

जब कोई शख्स अपने पर हंसना बंद कर देता है तो दूसरे लोग उस पर हंसना शुरू कर देते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

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