सिकुड़ रहा ऑप्शन राइटर का मार्जिन

ऑप्शन राइटर वह है जो बिना कोई लॉन्ग पोजिशन पकड़े ऑप्शन बेचता है, जैसे कोई स्टॉक्स या सूचकांकों में शॉर्ट सेलिंग करता है। उसे ऑप्शन बेचने पर उसका भाव या प्रीमियम मिल जाता है। लेकिन उसे पूरी तैयारी रखनी पड़ती है कि अगर ऑप्शन धारक खरीदने या बेचने का अपना अधिकार पाना चाहता है तो वह उसे पूरा कर सके। जहां ऑप्शन खरीदने वाला केवल प्रीमियम या भाव देकर मुक्त हो जाता है, वहीं ऑप्शन बेचने वाले या राइटर को फ्यूचर्स की तरह ब्रोकर के जरिए एक्सचेंज को बराबर मार्जिन भरते रहना पड़ता है।

सौदे की एक्सपायरी करीब आने के साथ ऑप्शन का समय मूल्य घटता जाता है और अंत में शून्य हो जाता है। यह स्थिति ऑप्शन राइटर के पक्ष में काम करती है। यूं तो सैद्धांतिक रूप से ऑप्शन राइटर के लिए लाभ की संभावना सीमित और घाटे की आशंका असीमित होती है, जबकि ऑप्शन खरीदार के लिए लाभ की संभावना असीमित और घाटे की आंशका प्रीमियम गंवाने तक सीमित रहती है। लेकिन व्यावहारिक सच्चाई यह है कि ऑप्शन राइटर के लाभ कमाने की प्रायिकता 67 प्रतिशत और ऑप्शन खरीदार के लाभ कमाने की प्रायिकता 37 प्रतिशत रहती है। शायद इसी व्यावहारिक सच ने आज बहुत सारे ट्रेडरों के लिए ऑप्शन राइटिंग या बेचने को नियमित आय का स्रोत बना दिया है। वे शेयर बाज़ार के इस सेगमेंट में बहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं। लेकिन यहां से कमाना अब उतना आसान नहीं रह गया है जितना ऊपर-ऊपर दिखता है। आइए, समझने की कोशिश करते हैं।

ऑप्शन प्राइसिंग के दो मॉडल हैं – बायनोमिएल ऑप्शन प्राइसिंग मॉडल और ब्लैक-शोल्स ऑप्शन प्राइसिंग मॉडल। हम इन मॉडलों के बारे में आगे विस्तार और गहराई से जानेंगे। लेकिन इन दोनों ही मॉडलों में स्टॉक या इंडेक्स ऑप्शन के स्ट्राइक मूल्य, स्पॉट/एक्सपायरी के मूल्य, स्टॉक या इंडेक्स की चंचलता (वोलैटिलिटी) और ऑप्शन की बची हुई अवधि के अलावा उस समय देश की रिस्क-फ्री ब्याज दर अहम भूमिका निभाती है।

रिस्क-फ्री ब्याज दर सरकारी बांड पर चल रही ब्याज या यील्ड दर को माना जाता है। फाइनेंस की दुनिया में इसे पूंजी की लागत भी कहा जाता है। बांड की ब्याज या कूपन दर पूर्व-निर्धारित होती है। लेकिन यील्ड वह दर है जो उसी बांड को मौजूदा भाव पर खरीदने पर मिलती है। मान लें कि 100 रुपए के किसी बांड पर शुरू में निर्धारित ब्याज की दर 5.5 प्रतिशत है। बांड का बाज़ार मूल्य अगर 110 रुपए हो गया है तो उसे खरीदनवाले को असल में (5.5/110)*100 = 5 प्रतिशत ब्याज ही मिलेगा। इसे ही यील्ड दर कहते हैं।

अब मूल मसले पर आते हैं। इस समय भारत तक में रिस्क-फ्री ब्याज दर घटती जा रही है। रिस्क-फ्री ब्याज दर का सीधा रिश्ता देश के केंद्रीय बैंक द्वारा घोषित ब्याज दर से होता है। अपने यहां रिजर्व बैंक पिछले साल फरवरी से लेकर अब तक ब्याज दर 6.25 प्रतिशत से घटाकर 4.40 प्रतिशत पर ला चुका है। दस साल के सरकारी बांडों पर यील्ड घटते-घटते 6.22 प्रतिशत तक आ चुकी है। ऑप्शन राइटर इसी ब्याज दर पर आधारित कॉल या पुट ऑप्शन के भाव/प्रीमियम तय कर सकता है। इससे उसका सीधा रिश्ता है। जब फिक्स्ड डिपॉजिट तक पर ब्याज दर घटती जा रही हो, तब ऑप्शन राइटर के हाथ सिकुड़ते जा रहे हैं क्योंकि फाइनेंस की दुनिया में वह मनमाने तरीके से ऑप्शन के भाव नहीं तय कर सकता।

गौरतलब है कि अपने यहां जब ऑप्शन ट्रेडिंग नहीं आई थी, तब शेयर बाज़ार में बदला सिस्टम चलता था। तब फाइनेंसर पक्की कमाई के लिए ट्रेडरों को ब्याज पर धन देते थे। वही बदला फाइनेंसर बंधी हुई कमाई के लिए अब बाज़ार में ऑप्शन राइटर बन गए हैं। उनके पास धन की कमी नहीं है। लेकिन इधर ब्याज दर लगातार घटने से उनके लिए कमाना बडा मुश्किल हो गया है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपए के कमज़ोर होने से भी ऑप्शन राइटर की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस समय डॉलर के सामने हमारा रुपया 77 तक गिरकर ऐतिहासिक तलहटी पर पहुंच चुका है।

वैसे, ब्याज या यील्ड घटने का सिलसिला भारत ही नहीं, सारी दुनिया में बदस्तूर चल रहा है। कम से कम डेढ़ दर्जन देश ऐसे हैं जो अपने सरकारी बांडों पर शून्य या ऋणात्मक ब्याज दे रहे हैं। जापान जैसे देश शून्य ब्याज दर की नीति पर चल रहे हैं, जबकि डेनमार्क जैसे देशों ने ऋणात्मक ब्याज दर नीति अपना रखी है। आज तो हो यह रहा है कि बड़े फाइनेंसर न्यूनतम ब्याज वाले देश से धन उठाकर ज्यादा ब्याज वाले देश के बांडों में लगा रहे हैं। इसे फाइनेंस की दुनिया में कैरी ट्रेड कहते हैं। इस धंधे का ही प्रताप है कि आज राजनीतिक रूप से अस्थिर और आर्थिक रूप से कमज़ोर देश मिस्र में जमकर बाहरी धन आ रहा है। ऐसा इसलिए कि वहां के सरकारी बांडों पर ज्यादा ब्याज मिल रहा है। दुनिया में इस समय बंधी आय की प्रतिभूतियों से जितना मिल सके, उतना निचोड़ने की दौड़ मची हुई है।

ऐसे में ऑप्शन राइटर भी बंधी आमदनी के चक्कर में पड़ा है तो उसके हाथ भी बंध गए हैं। आज वह मजबूरन वैसे ही ऑप्शन बेच रहा है जिनके स्ट्राइक मूल्य आस्ति (स्टॉक या इंडेक्स के स्पॉट मूल्य) से बहुत करीब हैं। उसे बंधी हुई सीमित आय के लिए बहुत ज्यादा रिस्क उठाना पड़ रहा है। वह ऐसा न करे तो उसके ऑप्शन का कोई पुछत्तर ही न मिले। ऑप्शन राइटर के सामने आई इस कठिन चुनौती का सीधा कारण यह है कि ऑप्शन का प्रीमियम या भाव अन्य कारकों के साथ ही रिस्क-फ्री रिटर्न की दर पर निर्भर करता है और देश में जिस तरह ब्याज दर घटाई जा रही है, उससे ऑप्शन राइटर का मार्जिन भी सिकुड़ता जा रहा है।

अगला पाठ अब सोमवार को….

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