सरपट आरी शार्प इंडस्ट्रीज की

शार्प इंडस्ट्रीज के बारे में कल सुबह ही लिखना था। फिर लगा कि जो शेयर पिछले तीन हफ्ते में ही 34.16 रुपए से 159 फीसदी बढ़कर 88.50 रुपए तक पहुंच गया हो, उसके बारे में अब क्या लिखना। लेकिन वो तो कल शाम तक फिर 5 फीसदी की सर्किट सीमा को छूने पहुंच गया। चला गया 92.90 रुपए पर जो उसके 52 हफ्तों का शिखर है और बंद हुआ 92.50 रुपए पर। बता दें कि 1989 में बनी इस कंपनी का जापानी इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांड शार्प से कोई लेना-देना नहीं है।

उपलब्ध जानकारियों के आधार पर वह तमाम तरह के ड्रिल, रीमर, कटर और ब्लेड जैसे उत्पाद बनाती है। असल में लिस्टेड होने के बावजूद कंपनी ने अपने बारे में ज्यादा जानकारियां सार्वजनिक नहीं कर रखी हैं। कहीं से पता चलता है कि यह गुड़गांव (हरियाणा) की कंपनी है तो कहीं से लगता है कि यह महाराष्ट्र में ठाणे जिले के वसई-पूर्व स्थित एक गांव से ऑपरेट होती है। इसका लोगो एक गोल आरी है जो रह-रहकर तेजी से घूमती है। हसमुख टी शेठ इसके प्रबंध निदेशक और कप्लायंस अफसर हैं, जबकि विनोद शेठ इसके चेयरमैन हैं।

कंपनी के शेयर केवल बीएसई (कोड – 523359) में लिस्टेड हैं। बीएसई ने तो इसकी वेबसाइट का पता ऐसा दे रखा है जो अंडर-कंस्ट्रक्शन है। 15 अक्टूबर के बाद से इसके शेयर बढ़ना शुरू हुए हैं। लेकिन इसकी क्या वजह है, इसका कोई आभास बीएसई पर उपलब्ध जानकारियों ने नहीं मिलता। 16 अक्टूबर को उसने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया था कि कैट कॉस्मेटिक्स एंड हेल्थकेयर प्रा. लिमिटेड ने उसके 11 लाख शेयर 5 अक्टूबर को बाजार में आशिका स्टॉक ब्रोकिंग के जरिए बेचे हैं। इस बिक्री से पहले कैट कॉस्मेटिक्स के पास कंपनी के 7.08 फीसदी (14,12,267) शेयर थे, जो अब घटकर केवल 1.57 फीसदी रह गए हैं। कैट कॉस्मेटिक्स ने कंपनी के 12,32,267 शेयर 26 जून 2010 को आरसिल (एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी-इंडिया लिमिटेड) से खरीदे थे। इससे यह तो पता चलता है कि किसी समय यह कंपनी भारी कर्ज के बोझ तले दबी रही है।

कंपनी ने 30 सितंबर 2010 को खत्म तिमाही के नतीजे 1 नवंबर को घोषित किए हैं। इस दौरान उसकी आय 19.17 करोड़ रुपए रही है, जो पिछले साल की समान अवधि की आय 32.12 करोड़ रुपए से 40.32 फीसदी कम है। हालांकि इस दौरान कच्चे माल की लागत काफी कम दिखाकर उसने अपना शुद्ध लाभ 5.18 करोड़ रुपए से 44.98 फीसदी बढ़ाकर 7.51 करोड़ रुपए कर लिया है। कंपनी की इक्विटी 19.95 करोड़ रुपए है जो 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 32.97 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 67.03 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। पब्लिक के हिस्से में से 0.01 फीसदी शेयर एफआईआई और 14.94 फीसदी हिस्सा डीआईआई के पास है। इसकी बुक वैल्यू 21.15 रुपए है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 9.35 रुपए है और उसका शेयर इस समय 9.89 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।

कंपनी ने 4 नवंबर को इत्तला दी कि कोलकाता की विठल कमर्शियल प्रा. लिमिटेड ने उसके 14.89 फीसदी (29.70 लाख) शेयर निकाल दिए हैं। यह सौदा महीने भर पहले 5 अक्टूबर को पूरा किया गया था। इसके बाद 8 नवंबर यानी कल कंपनी ने स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि जयपुर की कंपनी ऋषभ फ्लेक्सी-पैक ने उसके 5 फीसदी (9,97,733) शेयर 22 अक्टूबर को बाजार में आशिका स्टॉक ब्रोकिंग के जरिए बेच दिए हैं। कमाल की बात है कि शार्प इंडस्ट्रीज के लाखों शेयर अक्टूबर महीने में बिकते रहे। लेकिन उसके शेयर का भाव बढ़ता ही गया। बाजार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अगले 12 महीने में यह शेयर 134 रुपए तक जा सकता है।

कैसे यह करिश्मा होगा, यह बात बड़े ऑपरेटर और कंपनी के प्रवर्तक ही जानते होंगे। हमें तो कंपनी का मामला बड़ा जटिल लगता है। इस साल अप्रैल से ही इसके शेयरों में खरीद-बिक्री के भारी-भारी सौदे हुए हैं। लेकिन कंपनी को लेकर सार्वजनिक तौर पर इतना अंधेरा छाया है कि इसे हाथ लगाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। आश्चर्य होता है कि कोई लिस्टेड कंपनी कैसे इतनी अपारदर्शी हो सकती है और कैसे उसे लिस्ट करनेवाला स्टॉक एक्सचेंज इतना लापरवाह हो सकता है।

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