आईपीओ में रिटेल निवेश दो लाख

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने बीमा कंपनियों के पूंजी बाजार में उतरने की राह खोल दी है। लेकिन उसके बोर्ड ने सोमवार को अपनी बैठक में कुछ ऐसी शर्तें तय कर दीं जिन्हें बीमा कंपनियों को अलग से पूरा करना होगा। साथ ही बोर्ड ने किसी भी आईपीओ (प्रारंभिक पब्लिक ऑफर) में रिटेल निवेशकों के लिए अब तक चली आ रही एक लाख रुपए निवेश की सीमा को बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दिया है। इसके अलावा पूंजी बाजार से पूंजी जुटाने के मामले में कंपनी प्रवर्तकों और मर्चेंट बैंकरों की ढिलाई को रोकने के उपाय किए गए हैं।

सोमवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन में बोर्ड बैठक के फैसलों की जानकारी देते हुए सेबी के चेयरमैन सी बी भावे ने बताया कि सेबी के आईसीडीआर (इश्यू ऑफ कैपिटल एंड डिस्क्लोजर रिक्वॉयरमेंट) रेगुलेशन सभी उद्योग क्षेत्रों के लिए हैं और सेक्टर-निरपेक्ष होने के नाते ये बीमा कंपनियों पर भी लागू होंगे। लेकिन बीमा व्यवसाय की विशिष्टता के कारण इस क्षेत्र की कंपनियों को कुछ अतिरिक्त खुलासे करने होंगे। वित्तीय जानकारियों का विवरण बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) द्वारा निर्धारित फॉर्मैट में होगा। उन्हें बीमा उद्योग की स्थिति बयां करनी होगी। बीमा कंपनियों से जुड़े खास जोखिम बताने होंगे। बीमा उद्योग में इस्तेमाल किए जानेवाले शब्दों को अलग से स्पष्ट करना होगा।

सेबी बोर्ड के इस फैसले को देखकर लगता है कि उसने बेमन से खानापूरी की है और इरडा के साथ किसी भी तरह के टकराव से बचना चाहा है। दूसरे शब्दों में यूलिप के मामले में मात खाने के बाद उसने वही किया है जिसे कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है। लेकिन सेबी के इस फैसले से इतना तो हो ही गया है कि कम से कम साल भर से बीमा कंपनियों के आईपीओ लाने की चर्चाओं को एक मंजिल मिल गई है। इस मसले पर सेबी और इरडा की संयुक्त समिति दिशानिर्देशों को स्वीकार कर चुकी है और सेबी बोर्ड के फैसले के बाद अब इन्हें जल्दी ही सार्वजनिक कर दिया जाएगा।

वैसे, अगर इरडा के वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले मीडिया में आई खबरों पर यकीन करें तो दस साल से कम समय से सक्रिय जीवन बीमा कंपनियां आईपीओ नहीं ला सकतीं। इसका मतलब यह हुआ कि रिलायंस लाइफ फिलहाल अपना आईपीओ नहीं ला सकती। लेकिन एचडीएफसी लाइफ पूंजी बाजार में उतर सकती है क्योंकि उसे काम करते हुए दिसंबर में दस साल पूरे हो जाएंगे। बता दें कि बीमा उद्योग को अक्टूबर 2000 में निजी क्षेत्र के लिए खोला गया है।

सेबी बोर्ड ने काफी बहस-मुवाहिशे के बाद आईपीओ में रिटेल निवेशकों के लिए निर्धारित निवेश की सीमा को एक लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दिया है। यह कदम आईपीओ की बाढ़ के बीच रिटेल निवेशकों की भागीदारी को बढ़ा सकता है। हालांकि कहा जा रहा है कि इसका फायदा रिटेल निवेशकों को कम और एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) को ज्यादा मिलेगा। यह भी तय हुआ है कि कोई कंपनी जब सेबी के पास इश्यू का ड्राफ्ट ऑफर दस्तावेज जमा करती है, उसी समय वह इसकी सार्वजनिक घोषणा भी कर सकती है। यह दस्तावेज दाखिल करने के बाद मीडिया में इश्यू या कंपनी के बारे में जो भी खबरें आएंगी, मर्चेंट बैंकर को उन्हें पुष्ट करना होगा कि ये जानकारी ऑफर दस्तावेज में पहले से दी जा चुकी है। सेबी ने यह कदम मीडिया के जरिए कंपनी या इश्यू के बारे में बढ़ी-चढ़ी सूचनाएं फैलाने से रोकने के लिए उठाया है।

सेबी ने प्रवर्तकों द्वारा प्रिफरेंशियल इश्यू जारी करने पर भी कुछ नियम कठोर किए हैं। अगर किसी प्रवर्तक ने ऐसे इश्यू में जारी वारंटो को शेयर में नहीं बदला है तो उसे एक साल तक नए वारंट नहीं जारी किए जा सकते। कंपनियों को अपने शेयरधारकों को वह तारीख स्पष्ट रूप से बतानी होगी कि लाभांश का भुगतान या बोनस शेयरों की अदायगी कब तक कर दी जाएगी। यह भी तय हुआ है कि राइट इश्यू में भुगतान की शर्तें सभी निवेशकों के समान रहेंगी। अगर मूल्य का आंशिक या पूरा भुगतान करना है तो सभी को यह सुविधा मिलेगी। एक और महत्वपूर्ण फैसले के तहत सेबी ने डाक विभाग के पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस फंड (पीएलआईएफ) और रूरल पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस फंड (आरपीएलआईएफ) को क्यूआईबी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल खरीदार) का दर्जा दे दिया है।

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