शिपिंग कॉरपोरेशन का बेड़ा गरक!?!

शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), भारत सरकार की महारत्न कंपनी। साल भर पहले उसका शेयर दहाड़ रहा था। 6 अक्टूबर 2010 को 202.50 रुपए की अट्टालिका पर था। लेकिन बीते हफ्ते शुक्रवार 30 सितंबर से सरकारी खबरों के आधार पर उसे ऐसा धुना जा रहा है कि कल 3 अक्टूबर को वह 74.50 रुपए की घाटी में जा गिरा। पिछले एक महीने में इसे 91.60 रुपए से 18.66 फीसदी तोड़कर 74.50 रुपए तक ले आया गया है। कहा जा रहा है कि एयर इंडिया की तरह इसका भी बेड़ा गरक होने जा रहा है।

यह सच है कि पूरे शिपिंग उद्योग, खासकर एससीआई की हालत इस समय खराब चल रही है। कंपनी को पिछली दो तिमाहियों में घाटा उठाना पड़ा है। मार्च तिमाही में 6.17 करोड़ का तो जून तिमाही में 5.86 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा। लेकिन यह भी सच है कि शिपिंग उद्योग हमेशा चक्र में चलता है और इस समय वह नीचे के दौर में है। जिस कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 3825.48 करोड़ रुपए की कुल आय पर 567.35 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया हो और जिसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 13.01 रुपए रहा हो, जिसकी बुक वैल्यू ही 153.89 रुपए हो, उसे आशंका के आधार पर पीटकर इस तरहआधा कर देने का क्या मतलब है?

कल इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर एनएसई (कोड – SCI) में 9.51 फीसदी गिरकर 75.15 रुपए और बीएसई (कोड – 523598) में 9.62 फीसदी गिरकर 75.20 रुपए पर बंद हुआ है। बाजार में इसको लेकर जैसा माहौल बना दिया गया है, उसमें जल्दी ही इसके 70 रुपए के नीचे चले जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन लगता है कि जैसे सारा कुछ किसी बड़े गेमप्लान के तहत किया जा रहा है। जिस तरह एयर इंडिया को सरकारी कोशिशों ने पानी पिला-पिलाकर बेचने की कगार पर पहुंचा दिया, उसी तरह लगता है कि इसे भी निजी क्षेत्र के अधिग्रहण का आसान निशाना बनाने की साजिश की जा रही है।

पहले समाचार एजेंसी पीटीआई ने 30 सितंबर को खबर चलाई कि जहाजरानी मंत्रालय के एक आंतरिक दस्तावेज में कहा गया है कि, “पिछले 19 सालों से फायदे में चल रही एससीआई अब वित्तीय ध्वंस की कगार पर है। इस साल से वह घाटे के दलदल में धंसने लगेगी। बड़े और महंगे ऑर्डर उसे एकदम एयर इंडिया की तरह ऋण-फांस में जकड़ देंगे।” अगले दिन 1 अक्टूबर को टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि एससीआई के बारे में यह डरानेवाला गोपनीय नोट जहाजरानी मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव व वित्तीय सलाहकार विजय छिब्बर ने लिखा है। छिब्बर ने कहा है कि अगर कंपनी की ब्याज व आस्तियों की बिक्री से होनेवाली आय हटा दी जाए तो वह इसी साल से घाटे में आ जाएगी।

नोट के मुताबिक शिपिंग कॉरपोरेशन ने पिछले कुछ सालों में 33 वेसेल के ऑर्डर दिए है, जिनमें से केवल दस के लिए उसे फाइनेंस मिल सका है। बाकी 23 वेसेल के लिए धन की कश्मकश चल रही है। वेसेल का जो अनुबंध मूल्य है और अभी बाजार में उसका जो मूल्य चल रहा है, उसके चलते कंपनी को करीब 20 करोड़ डॉलर (998.4 करोड़ रुपए) का नुकसान उठाना पड़ेगा। जब यह खबर आई तो कंपनी के चेयरमैन एस हजारा जहाजरानी मंत्री और मंत्रालय के सचिव के साथ थे और तीनों को इसकी जानकारी नहीं थीं। पहला सवाल तो यही है कि इतना गोपनीय दस्तावेज लीक कैसे और क्यों किया गया? गौरतलब है कि जब जिस दिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह खबर चलाई, उसी दिन कंपनी 50 साल पूरा करने मुंबई में अपना स्वर्ण जयंती समारोह बना रही थी, जिसमें खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद थे।

कमाल की बात यह है कि नोट में कहा गया है कि कंपनी के निदेशक बोर्ड ने अपनी पिछली बैठक में नई खरीद पर पूरी तरह रोक लगाने की पेशकश की थी। लेकिन 23 सितंबर 2011 को कंपनी की 61वीं सालाना आमसभा में कंपनी के वित्त निदेशक बी के मंडल ने सूचित किया था कि चालू वित्त वर्ष के लिए 3700 करोड़ रुपए का पूंजी खर्च निर्धारित किया है जिससे 24 नए वेसेल खरीदे जाएंगे। इसमें वे 29 जहाज शामिल नहीं हैं जिन्हें तमाम यार्डों में पहले से बनाया जा रहा है। जहाजरानी मंत्री जी के वासन ने पिछले साल 10 नवंबर 2010 को राज्यसभा में बताया था कि इन 29 जहाजों पर 6000 करोड़ से ज्यादा का खर्च होगा और मार्च 2012 तक कुल 33 वेसेल खरीदने की योजना है।

सवाल उठता है कि जब साल भर पहले ही कोई योजना बन चुकी थी और मंत्री महोदय उसकी जानकारी संसद तक में दे चुके हैं, उस पर अब किसी गोपनीय नोट को लीक क्यों किया गया? पूंजी व्यय पहले से तय है, ऊपर से कंपनी के पास आज की तारीख में 6702.33 करोड़ रुपए रिजर्व है, उसके 998 करोड़ के घाटे के ‘दलदल’ में धंसने का डर क्यों दिखाया जा रहा है? यह सच है कि कंपनी के ऊपर मार्च 2011 के अंत तक 4715 करोड़ रुपए का ऋण था। लेकिन जिस कंपनी का ऋण-इक्विटी अनुपात अभी मात्र 0.55 हो, वह इसी साल से ऋण-फांस में कैसे फंस सकती है?

सच्चाई की तह तक पहुंचने के लिए इन सवालों पर गौर करना जरूरी है। फिलहाल हमें तो यह लगता है कि शिपिंग उद्योग के साथ ही शिपिंग कॉरपोरेशन भी बिजनेस के अनिवार्य चक्र से गुजर रही है और अगले साल 2012-13 से स्थितियां सामान्य ही नहीं, बेहतर भी हो जाएंगी। अभी नए वेसेल खरीदकर कंपनी जो भी क्षमता विस्तार कर कर रही है, उसका लाभ उसे अगले साल से मिलने लगेगा। ऐसे में आम निवेशकों को कुछ दिन तक देखना चाहिए कि उस्ताद लोग इसे कहां तक पीटकर ले जाते हैं और फिर 65-70 रुपए के बीच इसे थोड़ा-थोड़ा करके खरीदते रहना चाहिए। लंबे समय में यह फायदे का सौदा साबित होगा। लेकिन इस साल कंपनी दबाव में रहेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *